मारवाड़ी समाज के दो सक्रिय युवा लेखकों श्री विनोद रिंगानिया एवं श्री ताराचंद ठोल्या का आप सभी से परिचय करता हूँ। श्री विनोद रिंगानिया जी जहाँ पत्रकारिता क्षेत्र से संबंध रखते है, वहीं श्री ताराचंद जी "पूर्वत्तर प्रदेशीय मारवाड़ी युवा मंच " का मुख पत्र 'युवा शक्ति' के संपदक रह कर पत्रिका को नई दिशा देने में सक्षम रहे थे। क्रमशः यहाँ दोनों युवा साथियों के लेख को यहाँ पर प्रकाशित कर रहा हूँ। आप भी यदि किसी ऐसे युवा साथी को जानते हों तो हमें उनका परिचय भेजने की कृपा करगें। -संपादक
मेरा मंच में प्रकाशित श्री ताराचंद ठोल्या जी का लेख: "आह्वान"
किसी भी संगठन की सक्रियता या निष्क्रियता को प्रतिपादित करते हैं उसके सदस्य एवं कार्यकर्ता। संगठन यदि सामाजिक प्रतिनिधि संस्था हो तो सदस्य संख्या का महत्व और भी बढ़ जाता है। प्रवासी मारवाडी समाज (जो कि वर्षों से नही, दशकों से अवहेलना, कुप्रचार और अपमान का कड़वा घूँट पी- पी कर जीता आया है और अपनी धरोहर, अपनी सांस्कृतिक विरासत, अपना आत्म गौरव आदि सब भूल कर संख्या लघुता यानि minority की हीन भावना लिए व्यवसाय, पेशे और पैसे के खोल में दुबकता चला जा रहा है, तथा इतर समाज में अपनी "मतलबी बनिया" की छबि को पुख्ता करता जा रहा ) के सामाजिक हित और पुनरुथान का परचम थमने वाली संस्था के लिए तो यह और भी जरूरी हो जाता है कि समाज का हर तबका, हर युवा इससे सक्रिय रूप से जुड़े और इसके आन्दोलन में शामिल हो।
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राजनीति के खेल के नियम और मारवाड़ी -विनोद रिंगानिया
पिछले दिनों स्तंभकार मनजीत कृपलानी ने एक बड़ी ही महत्त्वपूर्ण बात की ओर इशारा किया। उन्होंने लिखा है कि भारत में लोकतांत्रिक प्रक्रिया का असर यह हुआ है कि ब्राह्मण धीरे-धीरे राजनीतिक सत्ता से अलग हटते गए हैं। भारत में हमेशा से हर क्षेत्र में अपना वर्चस्व बनाए रखने वाले ब्राह्मणों ने अब राजनीतिक सत्ता को छोड़कर उद्यम में अपने पैर जमाने शुरू कर दिए हैं। इसलिए आज हम यह ट्रेंड देख रहे हैं कि ब्राह्मण युवा (और अन्य तथाकथित ऊंची जातियों के) डिग्रियों से लैस होकर, खासकर इंजीनियरिंग की, उद्यमों में आ रहे हैं। सूचना प्रौद्योगिकी में भारत को एक महाशक्ति बनाने के पीछे इस युवा वर्ग का बड़ा हाथ है।
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