विगत 75 वर्षों से देश के विभिन्न प्रान्तों में सामाजिक रूप से संगठित मारवाड़ी समाज की अनेक संस्थाएँ अपने-अपने कार्यक्षेत्र में कार्य करते हुए समाज के युवकों को भी संगठित कर उनके मानसिक व शारीरिक विकास को केंद्रीत कर कई योजनाओं को साकार करते रहे हैं। जिनमें प्रमुखतः मुम्मबई मारवाड़ी सम्मेलन, मारवाड़ी युवा सम्मेलन-गुवाहाटी, मारवाड़ी युवक संघ- वाराणसी, रानीगंज एवम् मारवाड़ी व्यायामशाला- कोलकाता, मुजफ्फरपुर व भागलपुर इसके अलावा सैकड़ों जगह* मारवाड़ी समाज ने चिकित्सालय, पुस्तकालाऐं, विद्यालयों, धर्मशालाओं आदि का निर्माण भी किये गये। इन सबके वाबजूद समाज के कुछ चिन्तशील युवकों में एक कमी हमेशा खटकती रहती कि मारवाड़ी समाज के युवकों का एक राष्ट्रीय स्तर का एक संगठन होना चाहिये। इस दिशा में अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन लगातार प्रयासरत रही परन्तु अधिवेशनों में एक सत्र से आगे इनका प्रयास कभी भी सफल नहीं रहा। स्व. भंवारमल सिंघी व इनकी पत्नी स्व. श्रीमती सुशीला सिंघी के विचारों में इस बात की चिन्ता साफ झलकती दिखाई देती रहती कि देश में मारवाड़ी समाज का एक सुदृढ़ संगठन की नींव जल्द से जल्द रखी जानी चाहिये। इसी काल में श्री रतन शाह का नाम बड़ी तेजी के साथ उभर कर सामने आने लगा। देशभर में अयोजित मारवाड़ी सम्मेलन के अधिवेशनों में इनके भाषणों का विशेष प्रभाव समाज के युवकों में साफ प्रलक्षित होने लगा था। परन्तु सफल नेतृव का अभाव तब भी खटकता नजर आ रहा था।
सन् 1977 में असम के गुवाहाटी शहर में समाज के कुछ युवकों ने मिलकर पूर्वोत्तर प्रदेशीय मारवाड़ी सम्मेलन - युवा मंच का गठन कर लिया गया। यहाँ हम एक बात को उल्लेख करना जरूरी समझता हूँ कि यदि हम मंच के स्थापना काल की बात करें तो स्थापनाकाल के युवकों का नाम मंच के किसी भी दस्तावेज में पढ़ने को नहीं मिला। 1985 में आयोजित मायुम के प्रथम राष्ट्रीय अधिवेशन में बतौर स्वागत मंत्री श्री अनिल जैना ने अधिवेशन के अवसर निकाले गये विशेषांक में जिनके नामों का उल्लेख किया वे इस प्रकार हैं ^^अधिवेशन के प्रचारार्थ श्री नन्द किशोर जालान[स्व.], अध्यक्ष-अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन द्वारा दिया गया समयदान एवं किया गया श्रमदान युवामंच के अधिकारियों के लिये अनुकरणीय आदर्श रहेगा। श्री डॉ गिरधारी लाल सराफ[स्व.], महामंत्री-पूर्वोत्तर प्रदेशीय मारवाड़ी सम्मेलन एवं श्री जयदेव खंडेलवाल [स्व.], अध्यक्ष-पूर्वोत्तर प्रदेशीय मारवाड़ी सम्मेलन का अधिवेशन के प्रचारार्थ अवदान न केवल सराहनीय रहा, बल्कि युवा साथियों के लिये प्रेरणा का स्त्रोत भी बना। इस संदर्भ में युवा साथी श्री हरि प्रसाद शर्मा, श्री विनोद मोर, श्री पवन सीकारीया, श्री मुरलीधर तोशनीवाल, श्री सरोज जैन, श्री कमल अगरवाल, श्री निरंजन धीरसरीया, श्री संजीव गोयल, श्री प्रमोद जैन, श्री प्रकाश पंसारी आदि का सहयोग न केवल उल्लेखनीय है बल्कि अधिवेशन की कल्पित सफलता का मूल कारण भी।**
मारवाड़ी युवा मंच का सांगठनिक ढांचा त्रीस्तरीय प्रणाली है। जिसका संचालन अखिल भारतीय मारवाड़ी युवा मंच के संविधान में वर्णीत नियमों व मंच दर्शन के अन्र्तगत कार्य करता है। जिसमें 18 साल से 45 वर्ष के युवक व युवतियों को ही सदस्य बनाया जा सकता है। मंच के सक्रिय सदस्य 45 वर्ष की आयु तक रहा जा सकता है जबकि इसमें प्रवेश की आयु सीमा 40 तक ही है। सन् 1984 में पूर्वोत्तर प्रादेशिक मारवाड़ी सम्मेलन-युवा मंच के प्रान्तीय अध्यक्ष श्री सुरेश बेड़िया के सदप्रयासों के परिणाम स्वरूप 17 जनवरी, 1985 को अखिल भारतीय मारवाड़ी युवा मंच प्रथम राष्ट्रीय अधिवेशन गुवाहाटी के प्रसिद्ध गौशाला के प्रगंण में हुआ जिसमें मंच संगठन के प्राण सूत्रधार समाज के असम के वरिष्ठ अधिवक्ता व चिन्तक श्री प्रमोद्ध सराफ ने संस्थापक राष्ट्रीय अध्यक्ष का पदभार ग्रहण किया। प्रथम राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान असम के बहार जिन जगहों के दौरे किये गए वे निम्न प्रकार है।-
1. 23 नवम्बर से 7 दिसम्बर, 84 तक उत्तर बंगाल व उत्तर-पूर्व बिहार जिनमें सर्वश्री नन्दकिशोर जालान [स्व.], प्रमोद्ध सराफ, हरिप्रसाद शर्मा, पवनकुमार सिकारिया व बिनोद कुमार मोर जिसमें श्री जालान जी कोलकाता से बाकी सभी असम से थे।
2. 16 से 23 दिसम्बर, 84 उत्कल व दक्षिण बिहार जिनमें सर्वश्री गिरधारीलाल सराफ [स्व.], हरिप्रसाद शर्मा, मुरलीधर तोषनीवाल एवं सरोजकुमार शर्मा सभी असम से।
3. 29 दिसम्बर 84 से 8 जनवरी 85 दक्षिण भारत, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटका, आन्ध्र प्रदेश व तामिलनाडु इस यात्रा में सर्वश्री नन्दकिशोर जालान[स्व.]- कोलकाता, निरंजन लाल धिरासारिया-असम, संजिव गोयल-असम, रामनिवास शर्मा [स्व.] व भगतराम गुप्ता- आन्ध्रा।
क्रमवार विगत राष्ट्रीय अधिवेशन की तालिका निम्न प्रकार हैः-
1. 18-20 जनवरी, 1985-88 गुवाहाटी -राष्ट्रीय अध्यक्षः श्री प्रमोद्ध सराफ,
राष्ट्रीय महामंत्री श्री पवन सिकारिया
2. 08-10 अप्रैल, 1988-91 दिल्ली -राष्ट्रीय अध्यक्षः श्री अरुण बजाज,
राष्ट्रीय महामंत्री श्री निर्मल दोषी
3. 23-25 फरवरी, 1991-94 सिल्लीगुड़ी -राष्ट्रीय अध्यक्षः श्री ओम प्रकाश अग्रवाल,
राष्ट्रीय महामंत्री श्री संतोष कानोडिया
4. 21-23 जनवरी, 1994-96 कोलकाता -राष्ट्रीय अध्यक्षः श्री पवन सिकरीया,
राष्ट्रीय महामंत्री श्री राजकुमार गारोदिया[स्व.]
5. 27-29 दिसम्बर, 1996-2000 धनबाद -राष्ट्रीय अध्यक्षः श्री प्रमोद शाह,
राष्ट्रीय महामंत्री श्री महेश शाह
6. 07-09, जनवरी, 2000-2002** जमशेदपुर -राष्ट्रीय अध्यक्षः श्री अनिल जैना,
राष्ट्रीय महामंत्री श्री प्रमोद जैन
7. 29-31 दिसम्बर, 2002-2006 कटक -राष्ट्रीय अध्यक्षः श्री बलराम सुल्तानिया,
राष्ट्रीय महामंत्री श्री पुरुषोत्तम शर्मा
8. 31दिसम्बर से 2जनवरी 2006-2008 रायपुर -राष्ट्रीय अध्यक्षः श्री अनिल जाजोदिया,
राष्ट्रीय महामंत्री श्री मनमोहन लोहिया
9. 25-28 दिसम्बर, 2008-2011 रांची -राष्ट्रीय अध्यक्षः श्री जितेन्द्र गुप्ता,
राष्ट्रीय महामंत्री श्री संजय अग्रवाल(डॉक्टर एक्यूप्रेशर चिकित्सा)
आज मंच 600 से अधिक सक्रिय शाखाओं व 30 हजार से अधिक सदस्यों के माध्यम से देशभर में अपनी लोकप्रियता प्राप्त कर गत वर्ष ही अपना 25वां सालगिरह मना चुकी है। मंच के प्रमुख उद्देश्य में सबसे प्रथम में हमारी यह योजना रही कि समाज के युवकों को एक सूत्र में पीरो हम किस जनउपयोगी कार्यों में लगाना रहा है। एक समय इस प्रकार का दौर भी सामने आया कि समाज के युवक खुद को मारवाड़ी कहलाने में संकोच करने लगे थे। हम अपने आत्म सम्मान के प्रति काफी चिंतित रहने लगे। जगह-जगह मारवड़ी समाज अभद्र टिप्पणियों का शिकार होने लगा था। गुजराती शब्दकोश, फिल्मी धारावाहिक सीरियल, राजनेताओं के अपमान जनक बयान समाज के युवकों को झकझोर दिया।
उस समय असम में छात्र आन्दोलन काफी जोरों पर था, असमगण परिषद के आन्दोलन से समाज के हजारों युवक जुड़ चुके थे। परन्तु समाज के युवकों को बार-बार एक बात खटकती रही कि समाज के युवक दिशाहीन होने से किस तरह रोका जा सके। जो युवक पढ़ लिख नौकरी करने लगते वे या तो खुद को समाज से अलग समझने लगते या समाज में पैसे की प्रतिष्ठा के आगे उनकी पहचान लुप्त नजर आती। कुछ तो समाज को असभ्य समाज तक कहने में संकोच नहीं करते। स्व. भंवरमल सिंघी जी ने अपनी डायरी में एक बार लिखा कि जब वे वाराणसी विश्वविद्यालय में पढ़ते थे तो बिहार या असम की तरफ से आने वाली ट्रेनों में मारवाड़ियों को देख उन्हें बड़ा सदमा होता कि यह समाज कितना अनपढ़ और रूढ़ीवादी परम्परा से ग्रस्त है। उनके दिमाग में मारवाड़ी समाज की छवि बहुत बिगड़ चुकी थी, सो उन्होंने खुद को राजस्थानी समझना ही बेहतर विकल्प समझा। पर पढ़ाई समाप्त कर उनको कार्य करने के लिए कोलकाता आना हुआ, कोलकाता आने पर उनको लगा कि समाज में सिर्फ पैसेवाले की पूछ होती है। इसी कार्यकाल में स्व. सीताराम सेक्सरिया, स्व.भागीरथ कानोडिया एवं सम्मेलन के श्री ईश्वरदास जालान से उनकी मुलाकात ने उनके विचारों को झकझौर दिया। समाज में बदलाव का दौर शुरू होने लगा। देश के हर कोने से आवाज आने लगी। एक अखबार में छपे लेख से वे इतने विचलित हुए कि उन्होंने जबाब में एक लेख लिखा- ‘‘मैं मारवाड़ी हूँ’’ इस लेख की सारे देश से प्रतिक्रिया आने लगी। हिन्दी साहित्यवर्ग सिंघी जी इस स्वरूप को देख चकित हो गये। प्रायः सम्मेलनों में उनका मुख्य विषय समाज सुधार जिसमें विधवा विवाह, प्रर्दा प्रथा एवं समाज की राजनीति में सक्रिय भागीदारी के साथ-साथ युवकों को सामने आकर समाज की बागडोर संभालने हेतु मारवाड़ी युवकों को ललकारना शुरू किया। समाज के पढ़े लिखे युवक व संपन्न घराना खुद को लायन्स-लियो मानने लगे। जबकि मारवाड़ी कहलाने में संकोच करते थे। एक तरफ समाज में सांस्कृतिक हमला हो रहा था तो दूसरी तरफ समाज का धन समाज के द्वारा जनसेवा में खर्च होने के वावजूद मारवाड़ियों को गाली सुननी पड़ती। इसी दौरान असम के युवा साथियों ने कसम ले ली कि किसी भी तरह समाज के युवकों को एक सूत्र में पिरोया जाय।
मंच ने समाज और राष्ट्र की प्रमुख समस्याओं को ध्यान में रखते हुए मंच दर्शन का निर्माण श्री प्रमोद्ध सराफ के दिशा निर्देशन में किया गया। मंच दर्शन के निर्माण में जिन बिन्दूओं को समाहित किया गया उनमें प्रमुख हैं- युवकों का व्यक्तित्व निर्माण, दिशाहीन युवा शक्ति को सुसंगठित कर उनका मार्ग दर्शन करना, समाज व राष्ट्र के प्रति उनके उत्तरदायित्व का बोध व समग्रोन्नति हेतु उन्हें उत्साहित व प्ररित करना। इसके अलावा देश और समाज की उन्नति के लिये किसी भी रचनात्मक सहयोग, समाज द्वारा किये अथवा किये जाने वाले कार्यों की समीक्षा, सामाजिक प्रतिष्ठा का सुदृढ़ीकरण, समाज में स्वाभिमान एवं आत्मबल का निर्माण व संचार कर शैक्षणिक, शारीरिक, चारित्रिक, राजनैतिक के प्रति समाज के युवकों को निरन्तर जागरूक बनाये रखते हुए अपने परिवार व व्यवसाय के प्रति अपने कर्तव्यों का ईमानदारी के साथ निर्वाहन करते हुए समाज में व्याप्त कुरीतियों जैसे दहेज, विवाह शादियों में फिजूलखर्ची व आडम्बर, शादी समारोह के अवसर पर बधू पक्ष पर अनैतिक दबाव, धार्मिक आडम्बर आदि का पुरजोर विरोध करना मंच का प्रमुख मानते हुए जनसेवा को प्राथमिकता देने का लक्ष्य रखते हुए ‘मंच दर्शन’ को निम्न पांच सूत्रों में पिरोया गया है। जो निम्न प्रकार है।-
(1) मंच आधार : जनसेवा कार्य
(2) मंच भाव : समाज सुधार
(3) मंच शक्ति : व्यक्ति विकास
(4) मंच चाह : सामाजिक सम्मान और आत्म-सुरक्षा
(5) मंच लक्ष्य : राष्ट्रीय विकास एवं एकता
आज मारवाड़ी युवा मंच अखिल भारतीय स्तर की एक क्रियाशील संस्था के रूप में पूरे भारत में अपनी पहचान बना चुकी है। जहाँ एक तरफ समाज में मंच के प्रति आस्था जगी है तो दूसरी तरफ समाज के युवकों में पिछले दो दशक में काफी परिर्वतन देखने को मिला है। आज समाज के युवक खुद को मारवाड़ी कहलाने में गार्व की अनुभूति करते हैं। लोगों ने मंच के सदस्यों में विश्वास व्यक्त किया है। इस विश्वास को कायम रखना मंच के प्रत्येक सदस्यों की जिम्मेदारी बनती है। इसके लिए जहाँ एक तरफ पुराने कार्यकर्ताओं का सम्मान वहीं नये युवकों की प्रतिभा का विकास हमें निरन्तर करते रहना होगा। आज हम नासिक शहर में दशम राष्ट्रीय अधिवेशन करने की योजना को मुर्त रूप देने जा रहें हैं अधिवेशन स्थल के उद्घाटन व समापन समारोह को छोड़ कर अधिक समय विभिन्न प्रान्तों से आये प्रतिनिधियों के विकास व संगठन को सुदृढ़ करने की योजनाओं पर हमें केन्द्रित रहना चाहिये। जय समाज! [end] Search: Marwari Yuva Manch, Shambhu Choudhary, Marwari, Marwari Samaj.
* http://samajvikas.blogspot.com/2010/12/blog-post.html
**07-09, जनवरी 2000-2002 जमशेदपुर - राष्ट्रीय अध्यक्षः श्री अनिल जैना,
राष्ट्रीय महामंत्री श्री डॉ. प्रदीप जैन, गोहाटी (प्रथम डेढ़ वर्षों के लिए) श्री प्रमोद जैन, गोहाटी (बाद के डेढ़ वर्षों के लिए)
संपादक-शम्भु चौधरी
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June 16, 2011
मारवाड़ी युवा मंच एक अवलोकन - शम्भु चौधरी
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