लेखक: शम्भु चौधरी
प्रिय युवा साथियों,
मंच राष्ट्रीय स्तर पर अपने रजत जयन्ती वर्ष के अन्तिम चरण की तरफ बढ़ रहा है। अबतक मंच की मशाल यात्रा देश के विभिन्न हिस्सों से गुजरती हुई 40 दिनों की यात्रा करके यात्रा का लगभग पहला पहर पार कर चुकी है। थका देने वाली लम्बी इस यात्रा में जहाँ एक तरफ मंच के युवा साथियों में नई ऊर्जा का संचार किया वहीं देश के कई हिस्सों से मंच की नई शाखा खोलने हेतु कई नये युवा साथियों के फोन भी आने लगे। इस यात्रा की सबसे बड़ी सफलता रही इस यात्रा में दिये राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जितेन्द्र गुप्ता जी द्वारा दिया यह नारा "विकलांगिता विहीन हो देश हमारा" जो यात्रा की सफलता का मूल मंत्र साबित रहा।
इन 25 सालों में मंच ने जहाँ कई नई ऊँचाइयों को छुआ है वहीं एक बात जो बार-बार हमें सोचने को मजबूर करती रही है वह है युवाओं की उम्र सीमा को लेकर। जब मंच की स्थापना की गई तब से लेकर इस बात की बहस सदा बनी रहती है कि मंच में उम्र का प्रतिबंध या तो पुरी तरह से हटा लिया जाए या इसकी एक तय सीमा के अन्दर ही युवा साथियों को पदाधिकारी बनाया जाय। परन्तु पिछले चुनाव के समय हमने पाया कि मंच के कुछ वरिष्ठ सदस्यों ने अपनी उम्र प्रमाण पत्र को ही बदल डाला पद के लिए।
दोस्तों! यह एक ऐसा विषय है जिस पर खुले मन से बहस की गुंजाईश बनती है।
पिछले कुछ कार्यकाल में मंच के युवा साथियों ने उम्र सीमा में कुछ नये प्रावधान जोड़ दिये- कि 40 साल के अन्दर ही कोई भी समाज का युवा मंच का सदस्य बन सकते है, परन्तु उनकी सक्रिय सदस्यता की आयु सीमा 40 से बढ़ाकर 45 कर दी गई। उनके इस संशोधन पर तर्क यह था कि (1) जब कोई सदस्य पदाधिकारी बनने के लायक होता है तो उसकी उम्र ही समाप्त हो जाती है। (2) मंच को पदाधिकारी के रूप में अनुभवी नेतृत्व मिल जाता है।
दोस्तों! ये उपरोक्त दोनों ही तर्क सुनने में आज भी बहुत उतने ही अच्छे लगतें हैं परन्तु हम यह बात भूल जाते हैं कि मंच युवाओं के लिये बनाया गया है न की प्रोढ़ सदस्यों के लिये। मंच को युवाओं की जरूरत सदा बनी रहती है न की प्रोढ़ सदस्यों की। आज हम जिधर देखते हैं वहाँ से युवा वर्ग नदारत दिखाई दे रहा रहा है हर तरफ प्रोढ़ सदस्य ही दिखाई देते हैं। नया नेतृत्व वर्ग दिखाई ही नहीं देता सामने। सारे के सारे वही पुराने चेहरे घूम फिर के सामने आते हैं।
दोस्तों! तर्क की बात को तर्क से काटा तो जा सकता है परन्तु इन तर्कपूर्ण बातों का अन्त कभी भी संभव नहीं है। मंच को अनुभवी नेतृत्व के साथ ही साथ नये युवाओं की भी जरूरत है, बल्की ज्यादा जरूरत नये युवाओं की ही है। मारवाड़ी युवा मंच एक कार्यशाला है जहाँ समाज के नवयुवकों को न सिर्फ सामाजिक भावनाओं के साथ जोड़ा जाता है साथ ही उनके व्यक्तित्व को उभारने हेतु एक मंच भी दिया जाता है। मंच को एक शिक्षण संस्थान की तरह कार्य करने की जरूरत है न कि एक राजनीति मंच की तरह, इसके अनुभवी युवा वर्ग को मात्र एक शिक्षक की भूमिका अपनाने की जरूरत है। जबकि इसके विपरीत अनुभवी युवागण अधिकतर मंच की राजनीति में संलग्न पाये जातें हैं। इनके लिये समाज में बहुतसारी संस्थायें है जिसमें वे अपने अनुभवों का प्रयोग कर सकते हैं जहाँ अनुभवी सामाजिक कार्यकर्ताओं के अभाव में समाज की बहुत सी संस्थायें बीमार पड़ी है। बार-बार आज 25 सालों के बाद भी मंच में सिर्फ उनका ही उपयोग हो, ये सोच ही गलत है। पिछले दिनों कुछ लोगों ने सिल्लीगुड़ी में यह चर्चा भी की कि ऐसे युवकों का मंच क्या उपयोग कर सकता है? मेरी इस संबंध में स्पष्ट धारना है कि ऐसे युवाओं को समाज की अन्य रूग्न संस्थाओं की तरफ ध्यान देने की जरूरत है न कि युवामंच की तरफ।
एक बात यहाँ विशेष तौर पर यहाँ उल्लेख करना चाहता हूँ कि मुझे खासकर उस समय बहुत हताशा हुई जब मंच के कुछ वरिष्ठ सदस्यों ने पद के लिये अपने आयु प्रमाण पत्र तक को बदल डाले। ऐसे सदस्य जो अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए इस तरह की हरकत कर रहें हैं उनसे समाज की सेवा की हम कोई अपेक्षा रखतें हैं यह अपने आप में ही एक धोखा माना जायेगा। संविधान को ताख पे रखकर जिनलोगों ने इस कृत्य का साथ दिया है वे सभी एक नजर में दोषी माने जायेगें। भले ही इस कृत्य से किसी को झणिक लाभ मिल जाये इसके दूरगामी परिणाम मंच को घायल तक कर सकता है।
दोस्तों! मंच के सदस्यों को यह सोचना होगा कि मंच किसी पद पर अपने नाम खुदवाने का मंच नहीं, बल्की यह समाज के नये युवाओं को सामने लाने का मंच है। मैं चाहता हूँ बड़ी संख्या में उन सदस्यों को एक जिम्मेदारी के साथ मंच से उन्हें अलग कर दिया जाय जो उम्र की दहलीज को पार कर चुके हैं। इसमे किसी भी प्रकार के न तो संशोधन की जरूरत है न ही समझौते की।
अन्त में अपनी बात को समाप्त करने से पहले वर्तमान कार्यकारिणी से यह निवेदन भी रखना चाहता हूँ कि वे उम्र के इस विवाद को सख़्ती के साथ निपटाये, साथ ही आगामी चुनाव में "चुनाव प्रणाली" के नये स्वरूप जो आम सहमति से सभी पक्ष को स्वीकार हो, को लागू किया जाना चाहिये।
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