संपादक-शम्भु चौधरी

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लोकगीत ऐ प्रांण, आपणी संस्क्रति रा आपरी संस्कृति अर परम्परा रै पांण राजस्थान री न्यारी पिछाण। रणबंका वीरां री आ मरुधरा तीज-तिवारां में ई आगीवांण। आं तीज-तिवारां नै सरस बणावै अठै रा प्यारा-प्यारा लोकगीत। जीवण रो कोई मौको इस्यो नीं जद गीत नीं गाया जावै। जलम सूं पैली गीत, आखै जीवण गीत अर जीवण पछै फेर गीत। ऐ गीत इत्ता प्यारा, इत्ता सरस कै गावणिया अर सुणणियां रो मन हिलोरा लेवण लागै।

आपणी भाषा आपणी बात एक दिल से जुड़े मुद्दे के रूप में उदयपुर में `मायड़ भाषा´ स्तंभ से शुरू किया और राजस्थान की भाषा संस्कृति की रक्षा के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने को आतुर लोगों ने मान लिया कि संवैधानिक दर्जा दिलाना अब भास्कर का मुद्दा हो गया है। - कीर्ति राणा, संपादक - दैनिक भास्कर ( श्रीगंगानगर संस्करण)

श्री अरूण डागा का परिचय इन दिनों संगीत की दुनिया में प्राइवेट एलबम की धूम मची हुई है। इसके लिये किसी भी गायक को अपनी पूरी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिलता है। आज यहाँ हम कोलकाता के श्री अरूण डागा का परिचय आप सभी से करवातें हैं मूझे याद है जब श्री अरूण जी, गोपाल कलवानी के अनुरोध पर कोलकाता के 'कला मंदिर सभागार' में मारवाड़ी युवा मंच के एक कार्यक्रम- "गीत-संगीत प्रतियोगिता" में जैसे ही गाना शुरू किये सारा हॉल झूमने लगा था। once more... once more...

यह क्षेत्र इस्लामी कट्टरपंथियों के हाथ मुम्बई पर हुए आतंकवादी आक्रमण से एक सन्देश स्पष्ट है कि अब यदि समस्या को नही समझा गया और इसके जेहादी और इस्लामी पक्ष की अवहेलना की गयी तो शायद भारत को एक लोकतांत्रिक और खुले विचारों ......

झारखंड प्रान्त: स्थापना दिवस की तैयारी शुरू जमशेदपुर। अखिल भारतीय मारवाड़ी युवा मंच रजत जयंती वर्ष में प्रवेश कर रहा है। इस पल को यादगार बनाने के लिए मंच के सदस्य तैयारियों में जुट गये हैं। .......

सेटन हॉल यूनिवर्सिटी में गीता पढ़ना अनिवार्य अमेरिका की सेटन हॉल यूनिवर्सिटी में सभी छात्रों के लिए गीता पढ़ना अनिवार्य कर दिया गया है।इस यूनिवर्सिटी का मानना है कि छात्रों को सामाजिक सरोकारों से रूबरू कराने के लिए गीता से बेहतर कोई और माध्यम नहीं हो सकता है।......

डॉ.श्यामसुन्दर हरलालका निर्विरोध नये अध्यक्ष पूर्वोत्तर मारवाड़ी सम्मेलन की प्रादेशिक कार्यकारिणी बैठक एवं प्रादेशिक सभा की बैठक नगाँव में सफलतापूर्वक सम्पन्न हुई। बैठक को सफल बनाने में उपस्थित सभासदों का योगदान सराहनीय रहा। सभा में आगामी सत्र वर्ष 2009 एवं 2010 हेतु गौहाटी के डॉ.श्यामसुन्दर हरलालका को निर्विरोध नये अध्यक्ष के रूप में चुने गये।.......

उत्कल प्रान्तीय मारवाड़ी युवा मंच उत्कल प्रान्तीय मारवाड़ी युवा मंच की सप्तम प्रान्तीय कार्यकारिणी समिति की चतुर्थ बैठक एवं 19वीं प्रान्तीय सभा ‘प्रगति-2008’’ भारी सफलता के साथ सह राउरकेला शाखा के अतिथ्य में सम्पन्न हुई। ......

परिचय: श्री श्यामानन्द जालान 13 जनवरी 1934 को जन्मे श्री जालान का लालन पालन एवं शिक्षा-दीक्षा मुख्यतः कलकत्ता एवं मुजफ्फरपुर में ही हुई हैं। बचपन से राजनैतिक वातावरण में पले श्री जालान के पिता स्वर्गीय श्री ईश्वरदास जी जालान पश्चिम बंगाल विधान सभा के प्रथम अध्यक्ष थे।

दक्षिण दिल्ली शाखा के सौजन्य में 18 जनवरी 2009 को ’’ट्रेजर हण्ट कार रैली’’अखिल भारतीय मारवाड़ी युवा मंच द्वारा चलाये जा रहे देशव्यापी कन्या भ्रूण संरक्षण अभियान के अन्तर्गत देशभर में मंच की शाखाओं द्वारा विविध प्रकार के कार्यक्रमों के माध्यम से जन-जागृति अभियान चलाया जा रहा है।

Rajiv Ranjan Prasadसाहित्य शिल्पी ने अंतरजाल पर अपनी सशक्त दस्तक दी है। यह भी सत्य है कि कंप्यूटर के की-बोर्ड की पहुँच भले ही विश्वव्यापी हो, या कि देश के पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण में हो गयी हो किंतु बहुत से अनदेखे कोने हैं, जहाँ इस माध्यम का आलोक नहीं पहुँचता। यह आवश्यकता महसूस की गयी कि साहित्य शिल्पी को सभागारों, सडकों और गलियों तक भी पहुचना होगा। प्रेरणा उत्सव इस दिशा में पहला किंतु सशक्त कदम था।

हिन्दुस्तानी एकेडेमी का साहित्यकार सम्मान समारोह: Dr.Kavita Vachaknavee

इलाहाबाद, 6 फ़रवरी 2009 । "साहित्य से दिन-ब-दिन लोग विमुख होते जा रहे हैं। अध्यापक व छात्र, दोनों में लेखनी से लगाव कम हो रहा है। नए नए शोधकार्यों के लिए सहित्य जगत् में व्याप्त यह स्थिति अत्यन्त चिन्ताजनक है।"">

मंच एक कार्यशाला है

मारवाड़ी युवा मंच एक कार्यशाला है जहाँ समाज के नवयुवकों को न सिर्फ सामाजिक भावनाओं के साथ जोड़ा जाता है साथ ही उनके व्यक्तित्व को उभारने हेतु एक मंच भी दिया जाता है। मंच को एक शिक्षण संस्थान की तरह कार्य करने की जरूरत है न कि एक राजनीति मंच की तरह, इसके अनुभवी युवा वर्ग को मात्र एक शिक्षक की भूमिका अपनाने की जरूरत है। जबकि इसके विपरीत अनुभवी युवागण अधिकतर मंच की राजनीति में संलग्न पाये जातें हैं।

November 19, 2009

युवा मंच एक कार्यशाला है

लेखक: शम्भु चौधरी


प्रिय युवा साथियों,


मंच राष्ट्रीय स्तर पर अपने रजत जयन्ती वर्ष के अन्तिम चरण की तरफ बढ़ रहा है। अबतक मंच की मशाल यात्रा देश के विभिन्न हिस्सों से गुजरती हुई 40 दिनों की यात्रा करके यात्रा का लगभग पहला पहर पार कर चुकी है। थका देने वाली लम्बी इस यात्रा में जहाँ एक तरफ मंच के युवा साथियों में नई ऊर्जा का संचार किया वहीं देश के कई हिस्सों से मंच की नई शाखा खोलने हेतु कई नये युवा साथियों के फोन भी आने लगे। इस यात्रा की सबसे बड़ी सफलता रही इस यात्रा में दिये राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जितेन्द्र गुप्ता जी द्वारा दिया यह नारा "विकलांगिता विहीन हो देश हमारा" जो यात्रा की सफलता का मूल मंत्र साबित रहा।
इन 25 सालों में मंच ने जहाँ कई नई ऊँचाइयों को छुआ है वहीं एक बात जो बार-बार हमें सोचने को मजबूर करती रही है वह है युवाओं की उम्र सीमा को लेकर। जब मंच की स्थापना की गई तब से लेकर इस बात की बहस सदा बनी रहती है कि मंच में उम्र का प्रतिबंध या तो पुरी तरह से हटा लिया जाए या इसकी एक तय सीमा के अन्दर ही युवा साथियों को पदाधिकारी बनाया जाय। परन्तु पिछले चुनाव के समय हमने पाया कि मंच के कुछ वरिष्ठ सदस्यों ने अपनी उम्र प्रमाण पत्र को ही बदल डाला पद के लिए।
दोस्तों! यह एक ऐसा विषय है जिस पर खुले मन से बहस की गुंजाईश बनती है।
पिछले कुछ कार्यकाल में मंच के युवा साथियों ने उम्र सीमा में कुछ नये प्रावधान जोड़ दिये- कि 40 साल के अन्दर ही कोई भी समाज का युवा मंच का सदस्य बन सकते है, परन्तु उनकी सक्रिय सदस्यता की आयु सीमा 40 से बढ़ाकर 45 कर दी गई। उनके इस संशोधन पर तर्क यह था कि (1) जब कोई सदस्य पदाधिकारी बनने के लायक होता है तो उसकी उम्र ही समाप्त हो जाती है। (2) मंच को पदाधिकारी के रूप में अनुभवी नेतृत्व मिल जाता है।
दोस्तों! ये उपरोक्त दोनों ही तर्क सुनने में आज भी बहुत उतने ही अच्छे लगतें हैं परन्तु हम यह बात भूल जाते हैं कि मंच युवाओं के लिये बनाया गया है न की प्रोढ़ सदस्यों के लिये। मंच को युवाओं की जरूरत सदा बनी रहती है न की प्रोढ़ सदस्यों की। आज हम जिधर देखते हैं वहाँ से युवा वर्ग नदारत दिखाई दे रहा रहा है हर तरफ प्रोढ़ सदस्य ही दिखाई देते हैं। नया नेतृत्व वर्ग दिखाई ही नहीं देता सामने। सारे के सारे वही पुराने चेहरे घूम फिर के सामने आते हैं।
दोस्तों! तर्क की बात को तर्क से काटा तो जा सकता है परन्तु इन तर्कपूर्ण बातों का अन्त कभी भी संभव नहीं है। मंच को अनुभवी नेतृत्व के साथ ही साथ नये युवाओं की भी जरूरत है, बल्की ज्यादा जरूरत नये युवाओं की ही है। मारवाड़ी युवा मंच एक कार्यशाला है जहाँ समाज के नवयुवकों को न सिर्फ सामाजिक भावनाओं के साथ जोड़ा जाता है साथ ही उनके व्यक्तित्व को उभारने हेतु एक मंच भी दिया जाता है। मंच को एक शिक्षण संस्थान की तरह कार्य करने की जरूरत है न कि एक राजनीति मंच की तरह, इसके अनुभवी युवा वर्ग को मात्र एक शिक्षक की भूमिका अपनाने की जरूरत है। जबकि इसके विपरीत अनुभवी युवागण अधिकतर मंच की राजनीति में संलग्न पाये जातें हैं। इनके लिये समाज में बहुतसारी संस्थायें है जिसमें वे अपने अनुभवों का प्रयोग कर सकते हैं जहाँ अनुभवी सामाजिक कार्यकर्ताओं के अभाव में समाज की बहुत सी संस्थायें बीमार पड़ी है। बार-बार आज 25 सालों के बाद भी मंच में सिर्फ उनका ही उपयोग हो, ये सोच ही गलत है। पिछले दिनों कुछ लोगों ने सिल्लीगुड़ी में यह चर्चा भी की कि ऐसे युवकों का मंच क्या उपयोग कर सकता है? मेरी इस संबंध में स्पष्ट धारना है कि ऐसे युवाओं को समाज की अन्य रूग्न संस्थाओं की तरफ ध्यान देने की जरूरत है न कि युवामंच की तरफ।
एक बात यहाँ विशेष तौर पर यहाँ उल्लेख करना चाहता हूँ कि मुझे खासकर उस समय बहुत हताशा हुई जब मंच के कुछ वरिष्ठ सदस्यों ने पद के लिये अपने आयु प्रमाण पत्र तक को बदल डाले। ऐसे सदस्य जो अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए इस तरह की हरकत कर रहें हैं उनसे समाज की सेवा की हम कोई अपेक्षा रखतें हैं यह अपने आप में ही एक धोखा माना जायेगा। संविधान को ताख पे रखकर जिनलोगों ने इस कृत्य का साथ दिया है वे सभी एक नजर में दोषी माने जायेगें। भले ही इस कृत्य से किसी को झणिक लाभ मिल जाये इसके दूरगामी परिणाम मंच को घायल तक कर सकता है।
दोस्तों! मंच के सदस्यों को यह सोचना होगा कि मंच किसी पद पर अपने नाम खुदवाने का मंच नहीं, बल्की यह समाज के नये युवाओं को सामने लाने का मंच है। मैं चाहता हूँ बड़ी संख्या में उन सदस्यों को एक जिम्मेदारी के साथ मंच से उन्हें अलग कर दिया जाय जो उम्र की दहलीज को पार कर चुके हैं। इसमे किसी भी प्रकार के न तो संशोधन की जरूरत है न ही समझौते की।
अन्त में अपनी बात को समाप्त करने से पहले वर्तमान कार्यकारिणी से यह निवेदन भी रखना चाहता हूँ कि वे उम्र के इस विवाद को सख़्ती के साथ निपटाये, साथ ही आगामी चुनाव में "चुनाव प्रणाली" के नये स्वरूप जो आम सहमति से सभी पक्ष को स्वीकार हो, को लागू किया जाना चाहिये।

October 29, 2009

रजत जयंती वर्ष- प्रमोद्ध सराफ


मंच दर्शन की प्राण प्रतिष्ठा:ज्ञान ज्योति यात्रा का शुभारंभ


श्री प्रमोद्ध सराफ जी का नया लेख जो कि 'समाज विकास' पत्रिका के नये अंक - अक्टूबर '2009 में प्रकाशित हुआ है। "मंच समाचार" के पाठकों के लिये यहाँ पर जारी कर रहा हूँ। - शम्भु चौधरी


Pramod Sarafपरिचयः श्री प्रमोद्ध सराफ का जन्म 19 सितम्बर 1952, फतेहपुर (शेखावटी), पिता: श्री लक्ष्मी नारायण सराफ, पत्नी का नामः श्रीमती राजकुमारी सराफ, 1965 में छात्र नेता के बतौर सार्वजनिक जीवन में प्रवेश। आपको अखिल भारतीय मारवाड़ी युवा मंच के संस्थापक राश्ट्रीय अध्यक्ष होने का गौरव प्राप्त है। मारवाड़ी दातत्व औषद्यालय गुवाहाटी के पूर्व मानद मंत्री एवम् कामरूप चैम्बर आफ कॉमर्स, आसाम, गुवाहाटी स्टॉक एक्सचैंज के आप पूर्व सभापति भी रह चुके हैं। आप सामाजिक विषयों के प्रतिष्ठित लेखक के रूप में जाने जाते हैं। आपके लेखों से युवावर्ग पर विषेश प्रभाव पड़ता है। कवि हृदय श्री प्रमोद्ध सराफ ने अनेकों कविताओं की रचना भी की है।
पताः सराफ बिल्डिंग, प्रथल तल, ए.टी.रोड, गुवाहाटी, असम, फोन: 0361-2541381।


अखिल भारतीय मारवाड़ी युवा मंच अपने रजत जयंती वर्ष का उत्सव मना रहा है। उत्सव भारतीय एवं मारवाड़ी संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। उत्सव माध्यम होते हैं- जीवन में उत्साह संचार के। रजत जयंती समिति ने इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए इस उत्सव को मानने के क्रम में 100 दिवसीय ज्ञान ज्योति यात्रा का शुभारंभ, मंच के उद्गमस्थल गुवाहाटी शहर से मंच की जननी गुवाहाटी शाखा के स्थापना दिवस 9-10 अक्टूबर को किया है, जो मंच संस्कृति एवं मंच मूल्यों को दर्शाता है। मंच संस्कृति है-कृतज्ञता के भावों की। मंच मूल्य है-स्मृतियों को सजीव बनाना। इस यात्रा की 100 दिवसीय अवधि परिचायक है: मंच शाखाओं के सुदृढ़ आधार की एवं रजत जयंती समिति के नेतृत्व की शाखा नेतृत्व में अगाध विश्वास की। 100 दिवसीय यात्रा के आयोजन की कल्पना राजनैतिक दलों को भी दुष्कर प्रतीत होती है। ऐसी यात्रा की कल्पना, किसी सामाजिक संगठन द्वारा करना, निश्चित रूप से एक साहसिक कार्य है। इस साहसिक कार्य का बीड़ा उठाने हेतु रजत जयंती समिति के नेतृत्व वर्ग का अभिनन्दन। मंच साथी सोच सकते हैं कि इस कार्यक्रम का नामकरण ज्ञान ज्योति यात्रा क्यों किया गया। इस नाम का चयन सावधानी के साथ किया गया है। चंचलता एवं मनमौजीपन में इस कार्यक्रम का नामकरण नहीं किया गया है। यह नाम प्रतीकात्मक है। प्रतीकों का प्रयोग भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है। इस कार्यक्रम के नाम में मंच नेतृत्व की कल्पनाऐं छिपी है, जिनका अनावरण यात्रा काल में होगा। नाम की प्रासंगिकता इस वातावरण में है, जिसमें यह नाम दिया गया है। यह ऐसा नाम है, जिसके अर्थ को क्षमतानुसार बढ़ाया जा सकता है। जब मंच से जुड़े साथियों का विभाग नाम से हटकर इस नाम में छिपी अन्तर्निहीत भावनाओं की तरफ केन्द्रित होने लगेगा, तब उपरोक्त उल्लेखित ‘क्यों’ स्वतः धूमिल होने लगेगा। ऐसी साहसिक यात्राओं का नाम शक्तिवान एवं चेतनाशील होना अति आवश्यक है। नाम से प्राप्त होने वाले संकेतों एवं यात्रा के अपेक्षित परिणामों में समानता एवं सामंजस्य है। यह नाम भावनात्मक संबल प्रदान करते हुए इस यात्रा के कठिन कार्यों को सहज बनाना है। उद्देश्यों को सजीव करता है।
मंच नेतृत्व में यात्रा के नाम एवं कार्यक्रमों में मंच दर्शन की प्राण प्रतिष्ठा की है। मंच दर्शन के अंतर्गत वर्णित मंच आधार एवं मारवाड़ी समाज की विरासत को ज्ञान ज्योति यात्रा का भी आधार बनाया गया है। मारवाड़ी युवा मंच नेतृत्व एवं शाखाओं ने पिछले 20 वर्षों में कृत्रिम अंग प्रदान शिविरों के आयोजन के माध्यम से शारीरिक रूप से अपंग भाई बहिनों की सेवा का ज्ञान अर्जित किया है। ज्ञान ज्योति यात्रा न्यौता देती है- उपरोक्त वर्णित ज्ञान के रजत जयंती वर्ष में विशेष उपयोग का न केवल अर्जित ज्ञान के उपयोग का बल्कि इस ज्ञान की अतिवृद्धि का भी। ज्ञान ज्योति यात्रा काल में शाखाएं कृत्रिम अंग प्रदान शिविरों का आयोजन कर अपंग भाई बहिनों की जिंदगी की ज्योति जगा सकती है। जिन शाखाओं ने अभी तक यह ज्ञान अर्जित नहीं किया है, वे प्रत्यक्ष अनुभव के माध्यम से इस ज्ञान के अर्जन हेतु ऐसे शिविरों का आयोजन कर सकती हैं। रजत जयंती समिति की योजना है कि ज्ञान ज्योति यात्रा की 100 दिवसीय अवधि में कम से कम 100 कृत्रिम अंगप्रदाय शिविरों का आयोजन कर कम से कम 5000 अपंग भाई बहिनों के जीवन में आशादीप जलाए जाएं। हर शिविर में, शाखाओं के
अनुरोध पर,25 कृत्रिम पैर शाखाओं को निःशुल्क उपलब्ध करवाने की भी रजत जयंती समिति की योजना है।
ज्ञान ज्योति यात्रा काल में मंच शाखाओं को दिखाना है अपना कर्तव्य ज्ञान। निर्णय लेना है शिविरों के आयोजन का ज्ञान ज्योति यात्रा एक साथ ऐतिहासिक अवसर प्रदान कर रही है-ज्ञान के उपयोग एवं ज्ञान की अभिवृद्धि का।
मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष जितेन्द्र गुप्ता ने रजत जयंती वर्ष की थीम निर्धारित की है- ‘‘विकलांगता विहीन हो देश हमारा।’’ एक संदेश छिपा है इसमें। वह संदेश है कि देश के हर नागरिक का कर्तव्य है कि देश में विकलांगता समाप्त करने हेतु न केवल सचेष्ट हो बल्कि इसे चुनौती के रूप में स्वीकार करे। इस उद्देश्य हेतु अर्थदान एवं श्रमदान करे। पुरानी कहावत है कि बूंद बूंद से घड़ा भरता है। विकलांगता विहीन देश का सपना तभी पूरा हो सकता है, जब हम अपने क्षेत्र के निवासी विकलांग भाई बहिनों को चिन्हित करें व उनकी विकलांगता निवारण हेतु किसी सेवा भावी संस्था को प्रेरित एवं सक्रिय करें। सुप्रसिद्ध राजस्थानी कवि श्री सीताराम महर्षि की निम्न पंक्तियाँ थीम को बल देती प्रतीत होती हैं।


जिंदगी का हर कदम रख इस तरह प्यारे,
रोशनी का दायरा कुछ और बढ़ जाए।


पोलियो रोग से ग्रसित बच्चों की शल्य चिकित्सा हेतु शिविरों के आयोजन की कला का ज्ञान यद्यपि मंच शाखाओं में सीमित रूप में है। ज्ञान ज्योति यात्रा इस ज्ञान के अर्जन का शाखाओं को सुनहरा अवसर प्रदान कर रही है। पोलियो रोग से ग्रसित बच्चों की शल्य चिकित्सा हेतु मंच के शीर्ष नेतृत्व ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विख्यात हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. आदिनारायण राव, विशाखापट्टनम के नेतृत्व में देश के 10 राज्यों में ज्ञान ज्योति यात्राकाल में 10 शिविरों के आयोजन का सैद्धांतिक निर्णय लिया है। इन शिविरों के माध्यम से प्रायः 1500 बच्चों की सेवा का लक्ष्य रजत जयंती समिति ने निर्धारित किया है। शाखाओं के शीर्ष नेतृत्व को शीघ्र निर्णय लेना है-इन शिविरों के आयोजन का मंच से जड़ित संपन्न युवा साथियों को इन शिविरों के आयोजन हेतु आवश्यक आर्थिक सहयोग देकर अपना कर्तव्यज्ञान प्रकट करना है। इन शिविरों के आयोजन में कमोबेश 1 करोड़ रुपयों के व्यय का अनुमान है। मंच नेतृत्व एवं कार्यकर्ताओं को इस उद्देश्य हेतु संपन्न समाज बंधुओं से आवश्यक अर्थसंग्रह कर अपने कर्तव्य ज्ञान का निर्वाह करता है। अतः समस्त युवासाथियों को अपनी क्षमतानुसार इस प्रकल्प में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग कर यौवन धर्म का निर्वाह करना है।
सिलीगुड़ी स्थित राष्ट्रीय विकलांग सेवा केन्द्र में पोलियोग्रसित बच्चों की शल्य चिकित्सा हेतु ज्ञान ज्योति यात्रा काल में स्थायी व्यवस्था स्थापित करने का निर्णय भी रजत जयंती समिति के नेतृत्व की पहल पर लिया गया है। आशा है कि प्रस्तावित व्यवस्था का शुभारंभ दि. 17 जनवरी 2010 को सिलीगुड़ी के मंच साथियों द्वारा कर दिया जाएगा। हम समस्त मंच कार्यकर्ताओं का दायित्व है कि सिलीगुड़ी में प्रस्तावित इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में अवदान देकर इसे सफल बनाऐं व सिलीगुड़ी के साथियों का उत्साहवर्द्धन करें।
विश्व में 1 अक्टूबर विश्व रक्तदान दिवस के रूप में मनाया जाता है। चूंकि ज्ञान ज्योति यात्रा का शुभारंभ अक्टूबर माह में हुआ है एवं मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने रक्तदान कार्यक्रम को मंच के राष्ट्रीय कार्यक्रम की संज्ञा दी है, अतः इस यात्रा काल में शाखाओं द्वारा रक्तदान शिविरों का आयोजन अपेक्षित है। यात्राकाल में कम से कम 2500 ब्लड यूनिट रक्तदान का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। अतः मंच शाखाओं का कर्तव्य है कि रक्तदान कार्यक्रम को विशेष महत्व प्रदान करें।
मारवाड़ी युवा मंच का प्रथम राष्ट्रीय कार्यक्रम है। एम्बुलेंस सेवा, मंच द्वारा यह कार्यक्रम इस समय ग्रहण किया था जब ग्रामों एवं नगरों में ही नहीं बल्कि शहरों में भी रोगियों को एम्बुलेंस सेवाएं सहरूपेण उपलब्ध नहीं थी। मारवाड़ी युवा मंच के इस कार्यक्रम ने मारवाड़ी समाज के सामाजिक कर्तव्यबोध को उजागर किया। वर्तमान में 200 से अधिक शाखाओं द्वारा रोगियों को एम्बुलेंस सेवा में उपलब्ध करवाई जा रही हैं। मारवाड़ी युवा मंच के इस कार्यक्रम में अनेकानेक सेवा संगठनों का ध्यानाकर्षण किया एवं परिणामस्वरूप उन्होंने भी एम्बुलेंस सेवा प्रारंभ की। केन्द्रीय सरकार एवं राज्य सरकार भी इस सेवा क्षेत्र में पिछले 2-3 वर्षों में अधिक सक्रिय हुई है। अतः विवेक की मांग है कि मारवाड़ी युवा मंच अपने इस कार्यक्रम को ऊपर की ओर उठाकर मोबाईल ग्रामीण ‘चिकित्सा डिस्पेंशरी’ के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा सेवाएं प्रदान करना प्रारंभ करें। इसके शीर्ष नेतृत्व ने ऐसा करने का निर्णय सिलीगुड़ी में आयोजित राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति की बैठक में ले लिया था। रजत जयंती समिति के नेतृत्व ने ज्ञान ज्योति यात्रा काल में इस निर्णय के क्रियान्वयन की योजना बनाई है एवं निश्चित किया है कि देश के कम से कम 10 राज्यों में मोबाईल ग्रामीण चिकित्सा वाहनों के माध्यम से ग्रामीण चिकित्सा सुविधाएं प्रारंभ की जायें। आवश्यकतानुसार मंच कार्यक्रमों में बदलाव के ज्ञान को उजागर करता है-यह प्रस्तावित कार्यक्रम।
प्रस्तावित ज्ञान ज्योति यात्रा देश के 18 राज्यों से गुजरेगी। प्रतिदिन सैंकड़ों युवा हर कार्यक्रम के अवसर पर एकत्रित होंगे। समाज मनीषी भी इन कार्यक्रमों में उपस्थित होकर मंच साथियों को आशीर्वाद देंगे। मंच का शीर्ष नेतृत्व स्थानीय युवाओं से यात्रा के प्रत्येक स्वागत कार्यक्रम में रूबरू होगा। यह यात्रा मंच के शीर्ष नेतृत्व को अवसर प्रदान करेगी-सामाजिक कुरीतियों एवं रूढ़ियों के विरुद्ध जनमानस के निर्माण हेतु।
स्वसुधार की प्रवृत्ति विकसित करने के आह्वान हेतु। इसमें मंच दर्शन में वर्णित मंच भाव पुष्ट होगा।
ज्ञान ज्योति यात्रा काल में विभिन्न शहरों, नगरों एवं ग्रामों में समारोहों के आयोजन की भी योजना है। इन सम्मेलनों में मंच के वरिष्ठ सदस्यों एवं चुनिंदा समाज बंधुओं का सम्मान किये जाने का कार्यक्रम भी निश्चित किया गया है। यह कार्यक्रम वर्तमान में सक्रिय मंच सदस्यों को वरिष्ठ सदस्यों के व्यक्तित्व एवं अवदानों से परिचित करवाते हुए मंच के गौरवशाली इतिहास को उजागर करेगा। इन समारोहों में अनुकरणीय व्यक्तित्व के धनी चुनिंदा समाजबंधुओं का अभिनन्दन कर, इनके द्वारा प्रतिष्ठित मूल्यों एवं संस्कृति को उजागर करते हुए नमन किया जाएगा। ये प्रेरणादायी व्यक्तित्व युवाओं के दिलो दिमाग पर अमिट प्रभाव छोड़ेंगे एवं हमराही बनने का निमंत्रण देंगे। इस प्रकार ये समारोह ज्ञान्देयजनित चेतना उत्पन्न कर ज्ञानप्रवाह का सही माध्यम बनेंगे-ऐसे मेरी अपेक्षा है। इससे मंच शक्ति में वृद्धि होगी। युवा पीढ़ी को प्रेरक वातावरण मिलेगा। मंच शाखाओं का कर्तव्य है कि इन समारोहों में अपने क्षेत्र के कम से कम 25 क्षमतावान नए युवकों एवं युवतियों को समारोह स्थल तक लाएं व मंच नेतृत्व का दायित्व होगा कि मंच से अनजुड़े इन युवकों के अन्तर्मन में सामाजिक कर्तव्यों के निर्वाह की ज्योति आलोकित करे तभी वर्णित यात्रा सही मायनों में ज्ञान ज्योति यात्रा सिद्ध होगी एवं मंच दर्शन का तृतीय सूत्र मंच शक्ति व्यक्ति विकास पोषित एवं पल्लवित होगा।
यात्रा काल में पुस्तिकाओं एवं स्मारिकाओं के रूप में प्रकाशित मंच साहित्य मंच से संबंधित अनजाने पहलुओं को उजागर कर पाठकों की ज्ञानवृद्धि करेगा। इस साहित्य में मंच से जुड़े साथियों को अपने प्रश्नों के उत्तर प्राप्त होंगे। मंच प्रकाशनों की लोप संस्कृति पुनः उदित मुड़ में दिखाई देगी। मंच इतिहास में नए पृष्ठ जुड़ेंगे व पुराने पृष्ठों के धुंधले पड़ते प्रभावों को पुनः चमक प्राप्त होगी। ये प्रकाशन जहां पीड़ा अभिव्यक्ति का माध्यम बन कर चित्त को शांति प्रदान करेंगे, वहीं मंच शक्ति में इजाफा भी करेंगे। प्रकाशनों के अभाव में मंच से दूर होते पुराने युवा साथी पुनः मंच की तरफ उन्मुख होंगे। बैद्धिक क्षेत्रों में मंच विषयों पर चर्चाओं का दौर जीवंतता प्राप्त करेगा। ये प्रकाशन मानसिक विवेक जागृत कर ज्ञानस्रोत कहलाने के अधिकारी होंगे। यात्राकाल में मंच साहित्य प्रकाशन की योजना में इस यात्रा के ज्ञान ज्योति यात्रा नाम को प्रत्यक्षतः सार्थक सिद्ध करने की क्षमता प्रतीत होती है।
‘ज्ञान ज्योति यात्रा’ शब्दों का बारंबार उच्चारण इन शब्दों के गहरे अर्थ जानने हेतु जहां उत्प्रेरित करेगा, वहीं सामाजिक सम्मान की चाह रखने वाले तपस्वी व्यक्तित्वों की संख्या में भी वृद्धि करेगा। मंच साथियों एवं समाज मनीषियों की कुंडलिनी शक्तियों का जागरण कर यह यात्रा सामाजिक सम्मान एवं आत्म सुरक्षा की चाह कालांतर में पूरी करेगी-ऐसी भी मेरी अपेक्षा है। मंच दर्शन के इस चतुर्थ सूत्र के ऊपर प्रभावी कार्य का अवसर प्रदान करती है-यह यात्रा।
जिस सप्ताह में जिस शहर, नगर, ग्राम, में रजत जयंती समारोह आयोजित होने से, उस पूरे समाज सायंकाल मंच कार्यालय के समक्ष एवं क्षेत्र के समस्त निवासियों के घरों के समक्ष दीप प्रज्जवलित किये जाऐं। अधिकतर दीप प्रज्जवलन हेतु स्थानीय नागरिकों को भी प्रोत्साहित किया जाए। यह दीप ज्योति कार्यक्रम जहां भारतीय एवं मारवाड़ी संस्कृति के अनुसार है, वहीं स्थानीय निवासियों में मारवाड़ी समाज एवं मारवाड़ी युवा मंच के बारे में ज्ञानार्जन की चाह पैदा कर राष्ट्रीय एकीकरण का मार्ग प्रशस्त करेगा। मंच दर्शन का पंचम सूत्र-राष्ट्रीय एकता एवं विकास यद्यपि ज्ञान ज्योति यात्रा के हर कार्यक्रम में परिलक्षित है, परन्तु दीप प्रज्जवलन कार्यक्रम राष्ट्रीय एकीकरण की भावनायें जागृत करने का अच्छा माध्यम बन सकता है, बशर्ते कि स्थानीय समाज बंधुओं को इस कार्यक्रम में सही रूपेण शामिल किया जाए।
इंसान में अच्छाइयाँ उसकी गतिविधियों की देन होती है। मानसिक सुधार के लिये आवश्यक है। इंसान के दिमाग में ज्ञानविद्युत का संचार एवं विचारों की शुद्धता। ज्ञान ज्योति यात्रा आह्नान करती है-ईमानदारी से आत्मचिंतन हेतु। विगत 25 वर्षों में हुई भूलों के स्मरण हेतु। ऐसा आत्मचिंतन हमारे विचारों में शुद्धता पैदा करेगा एवं हमारे मानसिक सुधार का मार्ग प्रशस्त होगा। आत्मचिंतन जनित यह मानसिक सुधार हमारे व्यक्तित्व में निखार लाएगा। ज्ञान की ज्योति जलायेगा। हमारे साधारण नेत्र ज्ञानचक्षु का रूप ले लेंगे। हमारे कान परनिंदा सुनने के लिये इंकार कर देंगे। सहनशक्ति विकसित होगी। क्षोभ एवं विद्रोह की भावनाएं अस्त होंगी। 100 दिवसीय ज्ञानज्योति यात्रा आह्नान करती है, ऐसे आत्मचिंतन का ऐसा आत्मचिंतन इस रजतजयंती वर्ष को ज्ञानज्योति पर्व के रूप में स्मरणीय बना देगा। हमारी अच्छाइयां उभरने लगेंगी। प्रस्तावित ज्ञान ज्योति यात्रा से जुड़े शीर्ष नेतृत्व से आग्रह है कि वे स्वयं भी आत्मचिंतन हेतु मंच से जुड़े हर युवा साथी के लिये प्रेरणा स्रोत बने। मंच का सौभाग्य है कि मारवाड़ी युवा मंच के प्रवर्तक श्री अरुण बजाज रजत जयंती समिति के चेयरमैन हैं। इस रजत जयंती वर्ष में मंच साथियों को उनसे अपेक्षा है कि रजत से स्वर्ण की मंच यात्रा का निस्कंटक मार्ग सुनिश्चित करें।
अग्नि पुराण में कहा गया है कि बच्चे भगवान का दर्शन मिट्टी या लकड़ी आदि से बने हुए भगवाननुमा खिलौनों में करते हैं। औसत बुद्धि के व्यक्ति का भगवान पवित्र जल धाराओं में रहता है। तपस्वी व्यक्तियों का भगवान दिव्यमंडल में स्थित होता है। विवेकी व्यक्तियों का भगवान इनके स्वयं के अंदर ही रहता है। ऐसी स्थिति ज्ञान की भी है। अधिकांश व्यक्ति अनुसरण कर ज्ञान प्राप्त करते हैं। चंद व्यक्ति श्रवण, अध्ययन एवं मनन के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करते हैं। ज्ञान के प्रचार प्रसार हेतु वाणी लोकप्रिय माध्यम है। लेकिन कर्म प्रेरित ज्ञान सर्वोपरि है।
राजस्थान के सुप्रसिद्ध कवि श्री सीताराम महर्षि की निम्न पंक्तियों में अन्तर्निहीत ज्ञान देखें।


पौध प्यार की यहां हर जगह लगाओ तुम,
आग जो घृणा की है प्यार से बुझाओ तुम।
दूर हो गये हैं जो प्यार से मिलाओं तुम,
विष चढ़ा संदेह का प्यार से उतारो तुम।।



[end]

October 1, 2009

विद्रोही रचनाशीलता के एक कवि श्री हरीश भादानी जी नहीं रहे़......

लेखक: शम्भु चौधरी, कोलकाता



Harish Bhadaniकोलकाता:(दिनांक 2 अक्टूबर 2009): अभी-अभी समाचार मिला है कि राजस्थान के 'बच्चन' कहे जाने वाले प्रख्यात जनकवि हरीश भादानी का आज तड़के चार बजे बीकानेर स्थित आवास पर निधन हो गया। वे 76 वर्ष के थे। हरीश भादानी अपने पीछे तीन पुत्रियां और एक पुत्र छोड़ गए हैं। वे पिछले कुछ दिनों से अस्‍वस्‍थ चल रहे थे। शुक्रवार को उनकी देह अंतिम दर्शन के लिए उनके आवास पर रखी जाएगी। शनिवार को उनकी इच्छा के अनुरूप अंतिम संस्कार के स्थान पर उनके पार्थिव शरीर को सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज के विद्यार्थियों के अध्ययन के लिए सौंपा जाएगा। जनवादी लेखक संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे भादानी ने हिन्दी के साथ राजस्थानी भाषा को भी संवारने का कार्य किया। राजस्‍थान के वि‍गत चालीस सालों के प्रत्‍येक जन आंदोलन में उन्‍होंने सक्रि‍य रूप से हि‍स्‍सा लि‍या था। राजस्‍थानी और हिंदी में उनकी हजारों कवि‍ताएं हैं। ये कवि‍ताएं दो दर्जन से ज्‍यादा काव्‍य संकलनों में फैली हुई हैं। मजदूर और कि‍सानों के जीवन से लेकर प्रकृति‍ और वेदों की ऋचाओं पर आधारि‍त आधुनि‍क कवि‍ता की प्रगति‍शील धारा के नि‍र्माण में उनकी महत्‍वपूर्ण भूमि‍का थी। इसके अलावा हरीशजी ने राजस्‍थानी लोकगीतों की धुनों पर आधारि‍त उनके सैंकड़ों जनगीत लि‍खें हैं जो मजदूर आंदोलन का कंठहार बन चुके हैं।


आज जैसे ही राजस्थान से श्री सत्यनारायण सोनी जी का फोन मिला, मैं स्तब्ध रह गया। हाथों-हाथ मैंने श्री अरुण माहेश्वरी से बात की, तो उन्होंने बताया कि आज सुबह ही उनका शरीर शांत हो गया। पिछले सप्ताह ही श्री भादानी जी अपने नाती (अरुण जी के लड़के) के विवाह में शरीक होने के लिये कोलकाता आये थे। उस समय आप स्वस्थ्य से काफी कमजोर दिख रहे थे परन्तु नाती के विवाह की खुशी और सरला के प्रेम ने उसे कोलकाता खिंच लाया था। श्री अरुण जी ने बताया कि पिछले 26 सितम्बर को ही वे राजस्थान लोट गये थे।


श्री हरीश भादानी का जन्म 11 जून 1933 बीकानेर में (राजस्थान) में हुआ। आपने 1960 से 1974 तक वातायन (मासिक) का संपादन भी किया। कोलकात्ता से प्रकाशित मार्कसवादी पत्रिका 'कलम' (त्रैमासिक) से भी आपका गहरा जुड़ाव रहा है। आपकी अनौपचारिक शिक्षा पर 20-25 पुस्तिकायें प्रकाशित हो चुकि है। आपको राजस्थान साहित्य अकादमी से "मीरा" प्रियदर्शिनी अकादमी", परिवार अकादमी, महाराष्ट्र, पश्चिम बंग हिन्दी अकादमी(कोलकाता) से "राहुल" । के.के.बिड़ला फाउंडेशन से "बिहारी" सम्मान से सम्मानीत किया जा चुका है। इनके व्यक्तित्व ने बीकानेर नगर के होली के हुड़दंग में एक नई दिशा देने का प्रयास किया। खेड़ा की अश्लील गीतों के स्थान पर भादानीजी ने नगाड़े पर ग्रामीण वेशभूषा में सजकर समाज को बदलने वाले गीत गाने की परम्परा कायम की, उससे बीकानेर के समाज में बहुत अच्छा प्रभाव परिलक्षित हुआ था। उनका सरल और निश्चल व्यक्तित्व बीकानेर वासियों को बहुत पसन्द आता है। भादानीजी में अहंकार बिल्कुल नहीं है। इनके व्यक्तित्व में कोई छल छद्म या चतुराई नहीं है।

हरीश भादानी ने अपने परिवारिक जीवन में भी इसी प्रकार की जीवन दृष्टि रखी है और ऐसा लगता है कि उनको यह संस्कार अपने पिता श्री बेवा महाराज से प्राप्त हुए हैं। उनके गले का सुरीलापन भी उनके पिता की ही देन समझी जानी चाहिए। लेकिन उनके पिताश्री के सन्यास लेने से भादानीजी अपने बचपन से ही काफी असन्तुष्ट लगते हैं और इस आक्रोश और असंतोष के फलस्वरूप उनका कोमल हृदय गीतकार कवि बना। छबीली घाटी में उनका भी विशाल भवन था। वह सदैव भक्ति संगीत और हिंदी साहित्य के विद्वानों से अटा रहता था। हरीश भादानी प्रारंभ में रोमांटिक कवि हुआ करते थे। और उनकी कविताओं का प्रभाव समाज के सभी वर्गों पर एकसा पड़ता था। भादानी के प्रारंभिक जीवन में राजनीति का भी दखल रहा है। लेकिन ज्यों-ज्यों समय बीतता गया हरीश भादानीजी एक मूर्धन्य चिंतक और प्रसिद्ध कवि के रूप में प्रकट होते गए। हरीश भादानीजी को अभी तक एक उजली नजर की सुई 1967-68 एवं सन्नाटे के शिलाखण्ड पर 1983-84 पर सुधीन्द्र काव्य पुरस्कार राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार, द्वारा सुधीन्द्र पुरस्कार एक अकेला सूरज खेले पर मीरा पुरस्कार, पितृकल्प पर बिहारी सम्मान महाराष्ट्र, मुम्बई से ही प्रियदर्शन अकादमी से पुरस्कृत, राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर से विशिष्ठ साहित्यकार के रूप में सम्मानित किए जा चुके हैं।


11 जून 1933 बीकानेर में (राजस्थान) में आपका जन्म हुआ। आपकी प्रथमिक शिक्षा हिन्दी-महाजनी-संस्कृत घर में ही हुई। आपका जीवन संघर्षमय रहा । सड़क से जेल तक कि कई यात्राओं में आपको काफी उतार-चढ़ाव नजदीक से देखने को अवसर मिला । रायवादियों-समाजवादियों के बीच आपने सारा जीवन गुजार दिया। आपने कोलकाता में भी काफी समय गुजारा। आपकी पुत्री श्रीमती सरला माहेश्वरी ‘माकपा’ की तरफ से दो बार राज्यसभा की सांसद भी रह चुकी है। आपने 1960 से 1974 तक वातायन (मासिक) का संपादक भी रहे । कोलकाता से प्रकाशित मार्क्सवादी पत्रिका ‘कलम’ (त्रैमासिक) से भी आपका गहरा जुड़ाव रहा है। आपकी प्रोढ़शिक्षा, अनौपचारिक शिक्षा पर 20-25 पुस्तिकायें राजस्थानी में। राजस्थानी भाषा को आठवीं सूची में शामिल करने के लिए आन्दोलन में सक्रिय सहभागिता। ‘सयुजा सखाया’ प्रकाशित। आपको राजस्थान साहित्य अकादमी से ‘मीरा’ प्रियदर्शिनी अकादमी, परिवार अकादमी(महाराष्ट्र), पश्चिम बंग हिन्दी अकादमी(कोलकाता) से ‘राहुल’, । ‘एक उजली नजर की सुई(उदयपुर), ‘एक अकेला सूरज खेले’(उदयपुर), ‘विशिष्ठ साहित्यकार’(उदयपुर), ‘पितृकल्प’ के.के.बिड़ला फाउंडेशन से ‘बिहारी’ सम्मान से आपको सम्मानीत किया जा चुका है । आपके निधन के समाचार से राजस्थानी-हिन्दी साहित्य जगत को गहरा आघात शायद ही कोई इस महान व्यक्तित्व की जगह ले पाये। हम ई-हिन्दी साहित्य सभा की तरफ से अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं एवं उनकी आत्मा को शांति प्रदान हेतु ईश्वर से प्रथना करते हैं।

हिन्दी में प्रकाशित पुस्तकें:




अधूरे गीत (हिन्दी-राजस्थानी) 1959 बीकानेर।
सपन की गली (हिन्दी गीत कविताएँ) 1961 कलकत्ता।
हँसिनी याद की (मुक्तक) सूर्य प्रकाशन मंदिर, बीकानेर 1963।
एक उजली नजर की सुई (गीत) वातायान प्रकाशन, बीकानेर 1966 (दूसरा संस्करण-पंचशीलप्रकाशन, जयपुर)
सुलगते पिण्ड (कविताएं) वातायान प्रकाशन, बीकानेर 1966
नश्टो मोह (लम्बी कविता) धरती प्रकाशन बीकानेर 1981
सन्नाटे के शिलाखंड पर (कविताएं) धरती प्रकाशन, बीकानेर1982।
एक अकेला सूरज खेले (कविताएं) धरती प्रकाशन, बीकानेर 1983 (दूसरा संस्करण-कलासनप्रकाशन, बीकानेर 2005)
रोटी नाम सत है (जनगीत) कलम प्रकाशन, कलकत्ता 1982।
सड़कवासी राम (कविताएं) धरती प्रकाशन, बीकानेर 1985।
आज की आंख का सिलसिला (कविताएं) कविता प्रकाशन,1985।
विस्मय के अंशी है (ईशोपनिषद व संस्कृत कविताओं का गीत रूपान्तर) धरती प्रकाशन, बीकानेर 1988ं
साथ चलें हम (काव्यनाटक) गाड़ोदिया प्रकाशन, बीकानेर 1992।
पितृकल्प (लम्बी कविता) वैभव प्रकाशन, दिल्ली 1991 (दूसरा संस्करण-कलासन प्रकाशन, बीकानेर 2005)
सयुजा सखाया (ईशोपनिषद, असवामीय सूत्र, अथर्वद, वनदेवी खंड की कविताओं का गीत रूपान्तर मदनलाल साह एजूकेशन सोसायटी, कलकत्ता 1998।
मैं मेरा अष्टावक्र (लम्बी कविता) कलासान प्रकाशन बीकानेर 1999
क्यों करें प्रार्थना (कविताएं) कवि प्रकाशन, बीकानेर 2006
आड़ी तानें-सीधी तानें (चयनित गीत) कवि प्रकाशन बीकानेर 2006
अखिर जिज्ञासा (गद्य) भारत ग्रन्थ निकेतन, बीकानेर 2007

राजस्थानी में प्रकाशित पुस्तकें:


बाथां में भूगोळ (कविताएं) धरती प्रकाशन, बीकानेर 1984
खण-खण उकळलया हूणिया (होरठा) जोधपुर ज.ले.स।
खोल किवाड़ा हूणिया, सिरजण हारा हूणिया (होरठा) राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति जयपुर।
तीड़ोराव (नाटक) राजस्थानी भाषा-साहित्य संस्कृति अकादमी, बीकानेर पहला संस्करण 1990 दूसरा 1998।
जिण हाथां आ रेत रचीजै (कविताएं) अंशु प्रकाशन, बीकानेर।

इनकी चार कविताऎं:-


1.
बोलैनीं हेमाणी.....
जिण हाथां सूं
थें आ रेत रची है,
वां हाथां ई
म्हारै ऐड़ै उळझ्योड़ै उजाड़ में
कीं तो बीज देंवती!
थकी न थाकै
मांडै आखर,
ढाय-ढायती ई उगटावै
नूंवा अबोट,
कद सूं म्हारो
साव उघाड़ो औ तन
ईं माथै थूं
अ आ ई तो रेख देवती!
सांभ्या अतरा साज,
बिना साजिंदां
रागोळ्यां रंभावै,
वै गूंजां-अनुगूंजां
सूत्योड़ै अंतस नै जा झणकारै
सातूं नीं तो
एक सुरो
एकतारो ई तो थमा देंवती!
जिकै झरोखै
जा-जा झांकूं
दीखै सांप्रत नीलक
पण चारूं दिस
झलमल-झलमल
एकै सागै सात-सात रंग
इकरंगी कूंची ई
म्हारै मन तो फेर देंवती!
जिंयां घड़यो थेंघड़ीज्यो,
नीं आयो रच-रचणो
पण बूझण जोगो तो
राख्यो ई थें
भलै ई मत टीप
ओळियो म्हारो,
रै अणबोली
पण म्हारी रचणारी!
सैन-सैन में
इतरो ई समझादै-
कुण सै अणदीठै री बणी मारफत
राच्योड़ो राखै थूं
म्हारो जग ऐड़ो? [‘जिण हाथां आ रेत रचीजै’ से ]


2.
मैंने नहीं
कल ने बुलाया है!
खामोशियों की छतें
आबनूसी किवाड़े घरों पर
आदमी आदमी में दीवार है
तुम्हें छैनियां लेकर बुलाया है
सीटियों से सांस भर कर भागते
बाजार, मीलों,
दफ्तरों को रात के मुर्दे,
देखती ठंडी पुतलियां
आदमी अजनबी आदमी के लिए
तुम्हें मन खोलकर मिलने बुलाया है!
बल्ब की रोशनी रोड में बंद है
सिर्फ परछाई उतरती है बड़े फुटपाथ पर
जिन्दगी की जिल्द के
ऐसे सफे तो पढ़ लिये
तुम्हें अगला सफा पढ़ने बुलाया है!
मैंने नहीं
कल ने बुलाया है!


3.
क्षण-क्षण की छैनी से
काटो तो जानूँ!
पसर गया है / घेर शहर को
भरमों का संगमूसा / तीखे-तीखे शब्द सम्हाले
जड़े सुराखो तो जानूँ! / फेंक गया है
बरफ छतों से
कोई मूरख मौसम
पहले अपने ही आंगन से
आग उठाओ तो जानूँ!
चैराहों पर
प्रश्न-चिन्ह सी
खड़ी भीड़ को
अर्थ भरी आवाज लगाकर
दिशा दिखाओ तो जानूँ!
क्षण-क्षण की छैनी से
काटो तो जानूँ!
[‘एक उजली नजर की सुई’ से]


4.
रोटी नाम सत है
खाए से मुगत है
ऐरावत पर इंदर बैठे
बांट रहे टोपियां

झोलिया फैलाये लोग
भूग रहे सोटियां
वायदों की चूसणी से
छाले पड़े जीभ पर
रसोई में लाव-लाव भैरवी बजत है

रोटी नाम सत है
खाए से मुगत है
बोले खाली पेट की
करोड़ क्रोड़ कूडियां
खाकी वरदी वाले भोपे
भरे हैं बंदूकियां
पाखंड के राज को
स्वाहा-स्वाहा होमदे
राज के बिधाता सुण तेरे ही निमत्त है

रोटी नाम सत है
खाए से मुगत है
बाजरी के पिंड और
दाल की बैतरणी
थाली में परोसले
हथाली में परोसले

दाता जी के हाथ
मरोड़ कर परोसले
भूख के धरम राज यही तेरा ब्रत है

रोटी नाम सत है
खाए से मुगत है
[रोटी नाम सत है]


संपर्क:
पताः छबीली घाटी, बीकानेर फोनः 09413312930

July 30, 2009

श्री विनय सरावगी अध्यक्ष निर्वाचित



विनय सरावगी

झारखण्ड प्रा. मा. सम्मेलन के अध्यक्ष निर्वाचित

Binay Sarawagi


श्री विनय सरावगी झारखण्ड प्रान्तीय मारवाड़ी सम्मेलन के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। उन्होंने अपने प्रतिद्विन्दी को 82 मतों से पराजित किया। श्री विनय सरावगी को 110 एवं श्री धर्मचंद बजाज को 28 मत मिले।
श्री विनय सरावगी सुप्रसिद्ध समाजसेवी, उद्योगपति एवं अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री हनुमान सरावगी के छोटे सुपुत्र हैं।
श्री सरावगी झारखण्ड प्रान्तीय मारवाड़ी सम्मेलन में प्रान्तीय उपाध्यक्ष एवं प्रान्तीय मंत्री के पद पर अपना महत्वपूर्ण योगदान दे चुके हैं।
[Binay Sarawagi, Ranchi]

June 28, 2009

मातृभाषा की मान्यता से होगा संस्कृति का संरक्षण


- डॉ. राजेश कुमार व्यास


ओबामा सरकार की कार्यकारी शाखा के लिये जारी नौकरियों के आवेदन के लिए दुनियाभर की जिन 101 भाषाओं को चुना गया है, उनमें 20 क्षेत्रीय भाषाओं की जानकारी रखने वालों को आवेदन हेतु पात्र माना गया है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इन 20 क्षेत्रीय भाषाओं में मारवाड़ी का स्थान भी है। भले ही भारतीय संविधान की 8 वीं अनुसूची में सम्मिलित 22 भाषाओं में राजस्थानी का स्थान नहीं है परन्तु विश्व के सर्वाधिक शक्तिशाली राष्ट्र ने राजस्थानी को मान्यता देकर यह साबित कर दिया है कि राजस्थानी विश्व की किसी भी अन्य भाषा से कमतर नहीं है। राजस्थानी के साथ यह विडम्बना ही है कि बोलियों की राजनीति में अभी भी यह राज-काज की भाषा के रूप में संविधान की आठवी अनुसूची में स्थान नहीं पा सकी है, बावजूद इसके कि इसका समृद्ध प्राचीन साहित्य है, समृद्ध शब्द कोश है और सबसे बड़ी बात व्यापक स्तर पर इसकी मान्यता के लिए समय-समय पर भाषाविदों ने भी एकमत राय व्यक्त की है।
जो लोग राजस्थानी की मान्यता के विरोधी हैं, उन्हें इस बात को समझ लेना चाहिए कि राजस्थानी की मान्यता से किसी और भाषा का अहित नहीं होने वाला है और जो लोग बोलियों के नाम पर राजस्थानी की मान्यता पर प्रश्न उठाते हैं, उन्हें भी भाषाविदों की इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि किसी भी भाषा की जितनी अधिक बोलियां होती हैं, वह भाषा उतनी ही अधिक समृद्ध मानी जाती है। राजस्थानी के साथ यही है।
याद पड़ता है, इन पंक्तियों के लेखक ने कमलेश्वर पर राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी की पत्रिका ‘जागती जोत’ में एक संस्मरण वर्ष 2000 में लिखा था। संस्मरण कमलेश्वर को पढ़ने के लिए भेजा गया। संस्मरण पढ़ने के बाद इन पंक्तियों के लेखक को कमलेश्वर ने जो पत्र लिखा, उनकी पंक्तियां देखें, ‘कृपणता हूं तो राजस्थानी समझ में आती है। आखिर हिन्दी को अपना रक्त संस्कार राजस्थानी, शौरसेनी और ब्रज ने ही दिया है। अपनी मातृभाषाओं के विसर्जन से हिंदी प्रगाढ़ और शक्तिशाली नहीं होगी, हमें अपनी मातृभाषाओं को जीवित रखना पड़ेगा, जहां से हिंदी की शब्द सम्पदा संपन्न होगी। यह बिटिया बेटे को ब्याहने वाला रिश्ता है-जो नाती-पोतों में हमें अपनी निरंतरता देता है।’
कमलेश्वर ही क्यों विश्वकवि रवीन्द्र नाथ टैगौर ने भी राजस्थानी के दोहे सुनकर कभी कहा था, ‘‘रवीन्द्र गीतांजली लिख सकता है, डिंगल जैसे दोहे नहीं।’ भाषाशास्त्री सुनीति कुमार चटर्जी, आशुतोष मुखर्जी राजस्थानी भाषा के समृद्ध कोश और इसकी शानदार परम्परा के कायल होते हुए समय-समय पर राजस्थानी की मान्यता की हिमायत करते रहे हैं। यही नहीं भाषाओ के विकास क्रम के अंतर्गत राजस्थानी का प्रार्दुभाव अपभ्रंश में, अपभ्रंश की उत्पत्ति प्राकृत तथा प्राकृत का प्रारंभ संस्कृत और वैदिक संस्कृत की कोख में परिलक्षित होता है। इन सबके बावजूद राजस्थानी को मान्यता नहीं मिलना क्या समय की भारी विडंबना नहीं है?
यहां यह बात गौरतलब है कि आरंभ में संविधान की आठवी अनुसूची में जिन 14 भाषाओं का उल्लेख किया गया, उनका स्पष्टतः कोई वैज्ञानिक आधार नहीं था परन्तु राजस्थानी की मान्यता का तो आरंभ से ही वैज्ञानिक आधार रहा है। इसे बोलने वालों की संख्या के साथ ही भाषा की क्षमता और साहित्य की समृद्धि को ही यदि आधार माना जाए कि राजस्थानी प्रारंभ में ही संविधान की आठवी अनुसूची में सम्मिलित हो जानी चाहिए थी। ऐसा भी नहीं है कि राजस्थानी की मान्यता के लिए प्रयास नहीं हो रहे हैं। राजस्थान विधानसभा में वर्ष 1956 से ही राजस्थानी को राज-काज और शिक्षा की भाषा के रूप में मान्यता के प्रयास हो रहे हैं परन्तु इन प्रयासों को अमलीजामा पहनाने की दिशा में कोई समर्थ स्वर नहीं होने के कारण यह भाषा राजनीति की निरंतर शिकार होती रही है। राज्य विधानसभा में पहली बार 16 मई 1956 को विधायक शम्भुसिंह सहाड़ा ने राजस्थानी भाषा प्रोत्साहन के लिए जो अशासकीय संकल्प रखा उसमें राजस्थान की पाठशालाओं में राजस्थानी भाषा और तत्संबंधी बोलियों की शिक्षा देने पर जोर देने हेतु तगड़ा तर्क दिया गया था। संकल्प में कहा गया था कि बच्चे घरों मंे अपने माता-पिता के साथ जिस भाषा में बात करते हैं, उसी में शिक्षा दी जानी चाहिए, इसी से वे पाठ्यपुस्तकों में वर्णित बातों को प्रभावी रूप में ग्रहण कर पाएंगे।
तब से आज 53 वर्ष हो गए हैं, राजस्थानी भाषा की मान्यता के लिए अब भी यही तर्क है। मैं तो बल्कि यह भी मानता हूं कि शिक्षा क्षेत्र में राजस्थान का तेजी से विकास नहीं होने का प्रमुख कारण भी यही है कि यहां की भाषा व्यवहार और शिक्षा की भाषा नहीं बन पायी। यह कितनी विडम्बना की बात है कि लगभग 1 हजार ई. से 1 हजार 500 ई. के समय के परिपे्रक्ष्य को ध्यान में रखकर जिस भाषा के बारे में गुजराती भाषा एवं साहित्य के मर्मज्ञ स्व. झवेरचन्द मेघाणी ने यह लिखा कि व्यापक बोलचाल की भाषा राजस्थानी है और इसी की पुत्रियां फिर ब्रजभाषा, गुजराती और आधुनिक राजस्थानी का नाम धारण कर स्वतंत्र भाषाएं बनी। उस भाषा की संवैधानिक स्वीकृति के बारे में निरंतर प्रश्न उठाए जा रहे हैं।
एक प्रश्न यह हो सकता है कि संविधान की मान्यता के बगैर क्या कोई भाषा अपना अस्तित्व बनाकर नहीं रह सकती। यह सच है कि भाषा सरकारें नहीं बनती, वे लोग बनाते हैं जो इसका प्रयोग करते हैं परन्तु इसका व्यवहार में प्रयोग तो तब होगा न जब यह शिक्षा का माध्यम बनेगी, जब राजकाज, विधानसभाओं, अदालतों में इस भाषा का प्रयोग उचित समझा जाएगा। और यह सब तब होगा जब सरकार इसे मान्यता प्रदान करेगी। अभी तो स्थिति यह है कि राजस्थानी भाषा को यदि विधानसभा, अदालत या अन्य किसी राज के काज में उपयोग में लिया जाता है तो पहले उसकी वैधानिकता को ढूंढा जाता है। घर में राजस्थानी भाषा बोलने वाले बाहर हिन्दी या अंग्रेजी भाषा के उपयोग के लिए मजबूर हैं, ऐसे में बहुत से शब्द धीरे-धीरे प्रयोग में आने बंद हो रहे हैं। इन पंक्तियों के लेखक जैसे बहुत से हैं जिनका आरंभिक परिवेश राजस्थानी का रहा है, आज भी पति-पत्नि हम राजस्थानी में बात करते हैं परन्तु बच्चों से हिन्दी में बात करने के लिए मजबूर हैं। कारण यह है कि वे ठीक से विद्यालय में हिन्दी यदि नहीं बोल पाएंगे तो जिस भाषा में वे शिक्षा ले रहे हैं, उन्हें बोलने वाले दूसरे बच्चों के साथ उन्हें हिन भावना जो महसूस होगी। राजस्थान में ही गांवो, छोटे शहरों से राजधानियाँ और बड़े शहरों में आए अधिकाशं राजस्थानी बोलने वालों के साथ यही हो रहा है। उन्हें अपनी भाषा से लगाव है, प्यार है परन्तु इस बात की लगातार गम भी है कि उनके बाद इस भाषा को उनके बच्चे नहीं बोलेंगे, व्यवहार में नहीं लंेगे। क्या ऐसा तब संभव होता जब उन बच्चों को भी राजस्थानी में ही पढ़ने का मौका मिलता?
भाषा निरंतर प्रयोग से समृद्ध होती है परन्तु राजस्थानी का यह दुर्भाग्य है कि प्रतिवर्ष गांवों, सुदूर ढ़ाणियों से अपनी मेहनत से पढ़-लिखकर शहर में आकर नौकरी करने वाले राजस्थानी भाषी मजबूरन अपनी दूसरी पीढ़ी के साथ राजस्थानी में संवाद नहीं कर पाते हैं, ऐसे दौर में कब तक राजस्थानी गांवो के अलावा शहरों में बची रहेगी, कुछ कहा नहीं जा सकता। राजस्थानी की मान्यता को क्यों इस नजरिए से नहीं देखा जा रहा? क्यों राजस्थानी भाषा के बाद जो भाषाएं विकसित हुई उन्हें मान्यता मिल गयी परन्तु राजस्थानी आज भी मान्यता की बाट जो रही है? क्यों बोलियों के नाम पर राजस्थानी के साथ यह अन्याय हो रहा है? हकीकत यह है कि राजस्थानी की मान्यता इसके अधिकाधिक लोक प्रयोग के लिए जरूरी है, इसलिए भी कि इसी से मुद्रण और प्रकाशन, पठन-पाठन और बोलने की आदत का इसका अधिक विकास होगा और यही इस भाषा की आज की जरूरत है। इसी से राजस्थानी के समृद्ध प्राचीन साहित्य को भी बचाया जा सकेगा।
बहरहाल, भारतीय संविधान के परिप्रेक्ष्य में ही राजस्थानी की मान्यता को देंखे। संविधान की मूल अवधारणा लोकतांत्रिक प्रस्थापना में है। संविधान में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि अगर एक हिस्से की भाषा कोई है तो उसको बचाया जाए। राजस्थानी 9 करोड़ लोगों की भाषा है, इसे बचाना, इसकी मान्यता, संरक्षण इसलिए जरूरी है। राज्य विधानसभा में वर्तमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के मुख्यमंत्रीत्व काल में ही वर्ष 2003 में राजस्थानी को संविधान की आठवीं अनूसूची में सम्मिलित करने का संकल्प बगैर किसी बहस के ध्वनि मत से जब पारित किया जा चुका है तो फिर केन्द्र सरकार के स्तर पर इस पर अब कोई प्रश्न ही नहीं रहना चाहिए।
अभी कुछ समय पहले ही एक पुस्तक प्रदर्शनी में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ द्वारा वर्ष 1959 में जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन की प्रकाशित ‘भारत का भाषा सर्वेक्षण’ पुस्तक मैं खरीदकर लाया। उत्सुकतावश राजस्थानी के बारे में इसमें कुछ लिखा होने के लिए जब पन्ने खोलें तो पढ़कर बेहद अचरज हुआ। ग्रियर्सन ने इसमें राजस्थान की भाषा राजस्थानी बताते हुए स्पष्ट कहा है-‘‘मारवाड़ी के रूप में, राजस्थानी का व्यवहार समस्त भारतवर्ष में पाया जाता है।’’ इसी में एक स्थान पर राजस्थानी भाषा और उसकी बोलियों पर विस्तार से लिखते हुए स्पष्ट कहा है-‘‘पंजाबी के ठीक दक्षिण में लगभग 1 करोड़ साढ़े बयासी लाख राजस्थानी भाषा-भाषियों का क्षेत्र है जो इंगलैण्ड तथा वेल्स की आधी जनसंख्या के बराबर है। जिस प्रकार पंजाबी उत्तर-पश्चिम में मध्य देश की प्रसारित भाषा का प्रतिनिधित्व करती है, उसी प्रकार राजस्थानी उसके दक्षिण-पश्चिम में प्रसारित भाषा का प्रतिनिधित्व करती है।’’
ग्रियर्सन ने भाषा सर्वेक्षण का यह कार्य तब किया था जब भारतीय संविधान बना भी नहीं था, बाद में अंग्रेजी से यह पुस्तक हिन्दी में अनुवादित होकर प्रकाशित हुई। सोचिए जिस भाषा को सर्वेक्षण में राजस्थानियों का प्रतिनिधित्व की भाषा कहा गया, क्या वह संविधान की आठवी अनुसूची में राजस्थान का प्रतिनिधित्व करने योग्य नहीं है? वर्ष 1967 से लेकर अब तक बहुत सारी भाषाएं संविधान की 8 वीं अनुसूची में जोड़ी गयी है। यह सच में विडम्बना की बात है कि जिस भाषा की लिपि से आधुनिक देवनागरी और दूसरी अन्य भाषाओं की लिपियां बनी है और जिसका अपना व्याकरण और विश्व के विशालतम शब्दकोशों में से एक जिसका शब्दकोश है, ऐसी भाषा को संविधान की 8 वीं अनुसूची में जुड़ने का अभी भी इन्तजार है।
राजस्थानी की मान्यता में किसी का कोई व्यक्तिगत स्वार्थ नहीं है। इसका अर्थ इतना ही है कि इससे वर्षो पुरानी इस भाषा का संरक्षण हो सकेगा। ऐसे दौर में जब मातृभाषाओं पर विश्वभर में संकट चल रहा है, इस दिशा में गंभीर चिंतन कर त्वरित कार्यवाही की जानी समय की आवश्यकता भी है। इसलिए भी कि भाषा, साहित्य और संस्कृति से व्यक्ति अपनी जड़ों से जुड़ा रहता है। राज की मान्यता भाषा के प्रयोग को व्यापक स्तर पर प्रयोग की स्वीकृति देती है। इसी से फिर स्थान विशेष की संस्कृति का भी अपने आप ही संरक्षण होता है। क्यों नहीं राजस्थान की संस्कृति के संरक्षण की सोच के साथ भाषा की मान्यता पर सरकार चिंतन करे।


- डॉ. राजेश कुमार व्यास
III/39ए गाँधीनगर, न्याय पथ,
जयपुर- 302 015 (राजस्थान)
e-mail : dr.rajeshvyas5@gmail.com

66 सालों में सिर्फ सौ राजस्थानी फिल्में


कछुआ चाल वाली कहावत शायद इसी के लिए बनाई गई थी। क्षेत्रीय सिनेमा की दुनिया में राजस्थानी फिल्में आज बहुत ही सुस्त चाल में चल रही हैं और यह चाल भी ऐसी की 100 का आंकड़ा छूने में 66 वर्ष लग गये। इस बढ़ती उम्र के बावजूद यह नहीं कहा जा सकता कि हमारा सिनेमा अब परिपक्व हो गया है। साल-दर-साल बचकानी फिल्में और हर नई फिल्म के साथ दर्शकों की दम तोड़ती उम्मीदें। पहली राजस्थानी फिल्म ‘नजराना’ 1942 में आई थी और अब 2008 में ‘ओढ़ ली चुनरिया रे’ सौवीं फिल्म के रूप में सैंसर सर्टिफिकेट हासिल किया है। हिन्दी, तमिल या तेलुगु में इनसे दुगुनी फिल्में तो एक साल में बन जाती है। इनमें कई फिल्में तो ऐसी होती है जो दुनिया भर में कामयाबी का परचम लहराती है। पर राजस्थानी में अगर जगमोहन मूंधड़ा की फिल्म ‘बवंडर’ को अलग कर दें तो 66 साल में अंतर्राष्ट्रीय स्तर तो दूर, राष्ट्रीय स्तर की भी कोई फिल्म नहीं बन पाई है। भंवरी देवी प्रकरण 2001 में बनी फिल्म ‘बवंडर’ ने राजस्थानी सिनेमा को न सिर्फ पहली बार विदेशों तक पहुँचाया, बल्कि कई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिबलों में चर्चा और अवार्ड हासिल कर राजस्थान का परचम फहराया है। अभी के इस दौर में भोजपुरी फिल्में देश-विदेशों में जो धुंआधार प्रदर्शन कर रही हैं, वो जगजाहिर है। महत्वपूर्ण बात तो यह है कि भोजपुरी सिनेमा ने यह बुलंदी अपने बलबूते हासिल की है, किसी सरकारी सहायता और टैक्स-फ्री की सुविधा के बगैर रविकिशन और मनोज तिवारी जैसे नये अभिनेताओं के जरिये, भोजपुरी भाषा बोलनेवाले दर्शकों के व्यापक समर्थन के दम पर।
भोजपुरी भाषा बोलने वालों की तरह राजस्थानी बोलने वाले इस देश और दुनिया भर में फैले हुए हैं। वे जहां भी रह रहे हैं, वहां वर्षों से अपनी जमीन, जड़ और जुबान से जुड़े हुए हैं। अपने घरों को संस्कारों से सजाकर रखते हैं तथा अपनी कला-संस्कृति से प्यार करते हैं। राजस्थानी में साफ-सुथरा, सुरुचिपूर्ण मनोरंजन देखने-सुनने को मिले, तो उसे भी उतने ही चाव से अपना सकते हैं। पर हिन्दी और दूसरे प्रादेशिक सिनेमा से राजस्थानी सिनेमा इतना पीछे और पिछड़ा है कि लगता है यह दौड़ से ही बाहर हो गया है। पर इच्छाशक्ति, चाह, लगाव और साहस हो तो दर्शकों का ‘सपोर्ट पाकर, टीवी म्यूजिकल शो के प्रतियोगी की तरह फिर इस रेस में शामिल हो सकता है। राजस्थानी गीत-संगीत में रचे-बसे ‘बीणा’ के अलबमों को देश और दुनिया में जितनी लोकप्रियता मिली है, उससे ही यह बात साबित हो जाती है। राजस्थानी सिनेमा से जुड़े हुए फिल्मकारों को इस बात पर ईमानदार प्रयास करने की जरुरत है।
1942 से 2008 तक बनी हुई क्रमवार राजस्थानी फिल्में
1. नज़राना 2. बाबासा री लाडली 3. नानीबाई कौ मायरौ 4. बाबा रामदेव पीर 5. बाबा रामदेव 6. धणी-लुगाई 7. ढोला-मरवण 8. गणगौर 9.गोपीचंद-भरथरी 10. गोगाजी पीर 11. लाज राखो राणी सती 12. सुपातर बीनणी 13. वीर तेजाजी 14. गणगौर 15. सती सुहागण 16. म्हारी प्यारी चनणा 17. सुहागण रौ सिणगार 18. पिया मिलण री आस 19. चोखौ लागै सासरियौ 20. राम-चनणा 21. सावण री तीज 22. देवराणी-जेठाणी 23. डूंगर रौ भेद 24. नणद-भौजाई 25. थारी म्हारी 26. जय बाबा रामदेव 27. धरम भाई 28. बिकाऊ टोरड़ौ/अच्छायौ जायौ गीगलौ 29. करमा बाई 30. नानीबाई को मायरौ 31. बाई चाली सासरिये 32. ढोला-मारु 33. रामायण 34. जोग-संजोग/बाई रा भाग 35. बाईसा रा जतन करो 36. सतवादी राजा हरिश्चंन्द्र 37. घर में राज लुगायां कौ 38. रमकूड़ी-झमकूड़ी 39. बेटी राजस्थान री 40. चांदा थारै चांदणे 41. मां म्हनै क्यूं परणाई 42. बीनणी बोट देणनै 43. माटी री आण 44. सुहाग री आस 45. दादोसा री लाडली 46. वारी जाऊं बालाजी 47. भोमली 48. भाई दूज 49. बंधन वचनां रौ 50. मां राखो लाज म्हारी 51. जय करणी माता 52. चूनड़ी 53. लिछमी आई आंगणे 54. बीनणी 55. रामगढ़ की रामली 56. खून रौ टीकौ 57. जाटणी 58. डिग्गीपुरी का राजा 59. बीरा बेगौ आईजै रे 60. गौरी 61. बालम थारी चूनड़ी 62. बेटी हुई पराई रे 63. बाबा रामदेव 64. दूध रौ करज 65. बीनणी होवै तौ इसी 66. बापूजी नै चायै बीनणी 67. माता राणी भटियाणी 68.राधू की लिछमी 69. छम्मक छल्लो 70. लाछा गूजरी 71. जियो म्हारा लाल 72. देव 73. सरूप बाईसा 74. जय नाकोड़ा भैरव 75. सुहाग री मेहंदी 76. छैल छबीली छोरी 77. कोयलड़ी 78. जय सालासर हनुमान 79. गोरी रौ पल्लौ लटकै 80. म्हारी मां संतोषी 81. बवंडर 82. मां राजस्थान री 83. जय जीण माता 84. मेंहदी रच्या हाथ 85. चोखी आई बीनणी 86. ओ जी रे दीवाना 87. मां-बाप नै भूलजो मती 88. खम्मा-खम्मा वीर तेजा 89. लाडकी 90. जय श्री आई माता 91. लाडलौ 92. पराई बेटी 93. प्रीत न जाणै रीत 94. मां थारी ओळू घणी आवै 95. जय मां जोगणिया 96. जय जगन्नाथ 97. कन्हैयो 98. म्हारा श्याम धणी दातार 99. मां भटियाणीसा रौ रातीजोगौ 100. ओढ़ ली चुनरिया।
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
100 में से 6 फिल्में दूसरी भाषाओं से राजस्थानी में डब्ड। वीडियो फाॅमेंट में बनी हुई फिल्में शतक में शामिल नहीं है। साल भर में सबसे अधिक 7 फिल्में सन 1985 में निर्मित। पहली लोकप्रिय और हिट फिल्म ‘बाबा री लाडली’ (1961)। दूसरी पारी की पहली सुपर हिट फिल्म ‘सुपातर बीनणी’ (1981)। आल टाईम हिट फिल्म ‘बाई चाली सासरिये’ (1988) सबसे लम्बी अवधि की फिल्म ‘गौरी’ (1993): अवधि: 3 घंटा 12 मिनट। सबसे छोटी अवधि की फिल्म ‘लाज राखो राणी सती’ (1973) अवधि: 1 घंटा 54 मिनट।end

March 29, 2009

श्री कमल नोपानी बने नये अध्यक्ष


बिहार प्रादेशिक मारवाड़ी सम्मेलन का दो दिवसीय 26वां प्रादेशिक अधिवेशन

‘जागृति-2009’ 21-22 मार्च को
श्री कृष्ण स्मारक भवन, पटना में सम्पन्न
बिहार का दो दिवसीय अधिवेशन सम्पन्न
श्री कमल नोपानी बने नये अध्यक्ष
पारिवारिक मूल्यों में आ रही गिरावट रोकना ज़रूरी: रुँगटा



बिहार प्रादेशिक मारवाड़ी सम्मेलन का दो दिवसीय 26वां प्रादेशिक अधिवेशन ‘जागृति-2009’ 21-22 मार्च को महाराणा प्रताप भवन एवं श्री कृष्ण स्मारक भवन, पटना में सम्पन्न हुआ। सम्मेलन की पटना शाखा द्वारा आयोजित इस दो दिवसीय अधिवेशन के प्रथम दिन प्रादेशिक सभा, महिला सत्र, युवा सत्र एवं विषय निर्वाचिनी की बैठक हुई। बैठकों व सत्रों में दहेज, दिखावा व प्रदर्शन, भ्रूण हत्या आदि विषयों पर गहन चिंतन हुआ और इन सामाजिक बुराइयों को रोकने हेतु प्रयास करने पर जोर दिया।
कार्यक्रम के दूसरे दिन अ.भा.अग्रवाल सम्मेलन के राष्ट्रीय
अध्यक्ष श्री प्रदीप मित्तल ने झण्डोत्तोलन किया। गुरुकुल के बच्चों द्वारा शंख ध्वनि तथा वैदिक मंत्रों के साथ समारोह की शुरूआत हुई। श्रीमती सुनीता जोश ने गणेश वन्दना, श्रीमती दयारानी अग्रवाल तथा पूनम मोर ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया। मंचस्थ अतिथियों को माल्यार्पण व पगड़ी पहनाने के बाद स्वागताध्यक्ष श्री दशरथ कुमार गुप्ता ने स्वागत वक्तव्य रखा। अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री नन्दलाल रुँगटा ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया।
प्रान्तीय मंत्री श्री विनोद तोदी ने अपने प्रतिवेदन में कहा कि सम्मेलन एक महान संस्था है। अगर समर्पित लोग आगे जाकर निष्ठा के साथ कार्य करें तभी हमें लक्ष्य की प्राप्ति हो सकती है। हमारी नीतियों तथा कार्यक्रमों को समाज के लोगों तक पहुंचाने के लिए जमीनी स्तर के लोगों को सम्मेलन से जोड़ा जाय। पटना नगर शाखा के अध्यक्ष श्री निर्मल झुनझुनवाला ने सभी के प्रति आभार प्रकट किया। बिहार प्रदेश के अध्यक्ष श्री नथमल टिबड़ेवाल ने अपने वक्तव्य में कहा कि सम्मेलन के कार्यक्षेत्र को और व्यापक बनाने हेतु चिंतन की आवश्यकता है।
Kamal Nopaniइसके पश्चात् बिहार प्रादेशिक मारवाड़ी सम्मेलन के नवनिर्वाचित अध्यक्ष श्री कमल नोपानी को निवर्तमान अध्यक्ष श्री नथमल टिबडे़वाल ने भारी करतल ध्वनि के बीच माल्यार्पण, दुपट्टा एवं पगड़ी पहनाकर कार्यभार सौंपा।
नवनिर्वाचित अध्यक्ष श्री कमल नोपानी ने अपने सारगर्भित वक्तव्य में कहा कि हममें राजनैतिक इच्छा शक्ति का अभाव है। सत्ता में हमारी भागीदारी नहीं है। हमें राजनीति में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी। हम सभी को अपना नाम मतदाता सूची में दर्ज करवाना चाहिए। बिहार में 156 शाखाएं हैं उनको शक्तिशाली बनाना होगा। उन्होंने आशा व्यक्त की कि बिहार बदल रहा है और समाज भी बदलेगा। श्री नोपानी ने नई कार्यकारिणी के नामों की भी घोषणा की जिसमें श्री राजेश सिकरिया को महामंत्री मनोनीत किया।
Sri Nandlal Rungat and Sri kamal Nopani
विशिष्ट अतिथि बिहार के पूर्व वित्तमंत्री श्री शंकर प्रसाद टेकड़ीवाल ने कहा कि मारवाड़ी समाज ही देश को दिशा दे सकता है। श्री रामपाल अग्रवाल नूतन ने कहा-हम काफी सेवा कार्य करते हैं, सबके साथ घुल मिल जाते हैं। बावजूद इसके हमारी पहचान सकारात्मक नहीं हुई है।
मारवाड़ी युवा मंच की प्रान्तीय अध्यक्ष श्रीमती सरिता बजाज ने कहा कि मारवाड़ी युवा मंच के पदाधिकारी भी स्वयं को कार्यकर्ता समझते हैं। इस मौके पर श्री गणेश खेतड़ीवाल के प्रधान सम्पादकत्व में प्रकाशित ‘कुछ अपनी कुछ पराई’ नामक स्मारिका का विमोचन श्री रुँगटा ने किया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अखिल भारतीय अग्रवाल सम्मेलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री प्रदीप मित्तल ने अपने जोशपूर्ण वक्तव्य में कहा कि मारवाड़ी समाज देश की प्रत्येक राष्ट्रीय विपत्ति में सबसे पहले आगे आता है। लेकिन अब सिर्फ सेवा से हमारा गुजारा संभव नहीं है। हमारा वर्चस्व सत्ता में होना जरूरी है। संगठन को मजबूत करना होगा। ‘लंच-मंच हमारा और राज तुम्हारा’ अब नहीं चलेगा। हमें राजनीति में आने वाले प्रत्येक मारवाड़ी का तन-मन-धन से सहयोग करना चाहिए।
अंत में सम्मेलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा उद्घाटनकर्ता श्री नन्दलाल रुँगटा ने अपने सधे हुए वक्तव्य में संगठन शक्ति, शिक्षा, चिकित्सा, समाज सुधार, समाज सेवा, भ्रूण हत्या आदि विषयों पर प्रकाश डाला एवं राजनैतिक चेतना पर कहा कि हमें लोगों को मतदान करने हेतु प्रेरित करना होगा। संगठन को मजबूत करने के लिए प्रत्येक मारवाड़ी परिवार के कम से कम एक व्यक्ति को सक्रिय रूप में सम्मेलन से जुड़ना होगा। सम्मेलन जैसी सामाजिक संस्थाओं को दान पर निर्भर न रहकर आत्मनिर्भर बनना होगा। आज हमारे पारिवारिक मूल्यों एवं संबंधों में निरंतर गिरावट आ रही है, इसे रोकने हेतु प्रयास करना होगा। इसके अलावा राजस्थानी भाषा को बढ़ावा देने हेतु मारवाड़ी में बात करने पर उन्होंने जोर दिया। श्री रुँगटा ने कहा कि इस दिशा में पहल करते हुए हम साधारण बोलचाल की भाषा की एक शब्दावली पुस्तक निकालने का प्रयास कर रहे हैं। इस मौके पर प्रादेशिक सम्मेलन द्वारा विशिष्ट शाखाओं के प्रतिनिधियों, पदाधिकारियों एवं अतिथियों को मोमेंट एवं शॉल देकर सम्मानित किया गया। मंच पर अ.भा.मारवाड़ी सम्मेलन के उपाध्यक्ष श्री बद्रीप्रसाद भीमसरिया, राष्ट्रीय महामंत्री श्री रामअवतार पोद्दार, संयुक्त राष्ट्रीय महामंत्री श्री ओमप्रकाश पोद्दार व श्री संजय हरलालका, श्री कैलाश प्रसाद झुनझुनवाला, श्री नारायण प्रसाद अग्रवाल, बनारसी प्रसाद झुनझुनवाला, गोवर्धन नोपानी, डाॅ. आर.के.मोदी, विश्वनाथ झुनझुनवाला, आर.के.मोदी, मोतीलाल खेतान, विमल जैन, पुष्करलाल अग्रवाल, श्री रमेश केजरीवाल, श्री जगदीश प्रसाद मोहनका, श्री बादल चंद अग्रवाल, श्री विजय कुमार किशोरपुरिया, श्री अशोक तुलस्यान, श्री ओम प्रकाश खेमका आदि भी उपस्थित थे। कार्यक्रम का सफल संचालन श्री महेश जालान ने किया। धन्यवाद ज्ञापन के साथ इस सत्र का समापन हुआ। भोजन के पश्चात् प्रतिनिधि सत्र शुरू हुआ जिसमें बिहार प्रादेशिक मारवाड़ी सम्मेलन के नये
पदाधिकारियों ने स्थान ग्रहण किया। सत्र में विषय निर्वाचिनी द्वारा स्वीकृत कई प्रस्तावों पर विस्तृत चर्चा हुई एवं कई प्रस्ताव पारित किये गये। सायं रंगारंग राजस्थानी सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ अधिवेशन सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ।

March 20, 2009

MYM Ilkal

MYM Ilkal selected its new body members for year 2009-2010. ASHOK K KATHARIYA has been selected unanimously as new PRESIDENT with the support of all the members of the branch. The board of members is as follows:
Ashok Kathariya : President.
Jagdish Lahoti : Secretery.
Srikant Karwa : Treasurer.
Brijmohan Malani : Vice-President.
Govind Karwa : Vice-president.

March 4, 2009

गाकर जी लेता हूँ: पण्डित जसराज

Pandit Jasraj, Pramod Shah and  Dr. Krishn Bihari Mishra
संगीत मार्तण्ड पद्मविभूषण पंडित जसराज प्रमोद शाह द्वारा तीन खंडों में परिकल्पित, संकलित एवं संपादित पुस्तक ‘थॉट्स ऑन रिलीजियस पॉलिटिक्स इन इंडिया’ (1857-2008) का लोकार्पण करते हुए। साथ में हैं डॉ. कृष्ण बिहारी मिश्र, प्रभात खबर के प्रधान संपादक हरिवंश, श्री हरि कृष्ण चौधरी और एकदम बायें प्रमोद शाह।

कोलकाता: भारत को साहित्य व संगीत को साथ लेकर चलने की जरुरत है, इसी से मनुष्यता और सद्भाव बचेगा। मुझे कुछ लिखना-पढ़ना नहीं आता। जो कुछ है, उसे गाकर जी लेता हूँ। ये बातें संगीत मार्तण्ड पद्मविभूषण पंडित जसराज ने प्रमोद शाह द्वारा तीन खंडों में परिकल्पित, संकलित एवं संपादित पुस्तक ‘थॉट्स ऑन रिलीजियस पॉलिटिक्स इन इंडिया’ (1857-2008) का लोकार्पण करते हुए कही। समारोह की अध्यक्षता डॉ. कृष्ण बिहारी मिश्र ने की। समारोह के विशिष्ट अतिथि प्रभात खबर के प्रधान संपादक हरिवंश ने भी अपने विचार रखे।
Religious Politics In Indiaभारतीय भाषा परिषद में आयोजित लोकार्पण समारोह में पंडित जसराज ने कहा, ‘मैं एक समारोह में गा रहा था तो पीछे से किसी ने फरमाया, अल्लाह हो मेहरबान। इसे सुन कर मैं क्षण भर के लिए खो गया इसके बारे में जब मैंने अपनी बेटी को फोन किया, तो उसने बताया कि भगवान ने आपको एक विशेष काम के लिए धरती पर भेजा है। अपना विचार प्रस्तुत करने के बाद पंडित जसराज ने ‘चिदानन्द शिवोह्म, अल्लाह हो मेहरबान’ और शिवशंकर महादेव गाकर श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया। हर-हर महादेव कहते हुए उन्होंने प्रमोद शाह को आशीर्वाद दिया। उन्होंने कहा, मेरे मुंह से अभी हर-हर महादेव का स्वर निकला है। इसलिए आपकी यह किताब दुनिया को बहुत पसंद आयेगी।’ मौके पर प्रभात खबर के प्रधान संपादक हरिवंश ने कहा कि सांप्रदायिकता धार्मिक नहीं राजनीतिक प्रतिक्रिया है। इतिहास के गड़े मुर्दे को उखाड़ने से देश शक्तिशाली नहीं होगा। जो भारत को गढ़ना और बनाना चाहते हैं, उन्हें भाषा, धर्म, जाति और समुदाय से ऊपर उठ कर सद्भाव बनाने की पहल करनी चाहिए। समारोह की अध्यक्षता मूर्धन्य साहित्यकार डॉ. कृष्ण बिहारी मिश्र ने की। उन्होंने कहा कि साहित्य, संगीत व अध्यात्म का स्वर राजनीति छोड़ दे, तो वह लंगड़ी हो जायेगी। रामकृष्ण परमहंस व महात्मा गांधी से बड़ा धर्मनिरपेक्ष कौन हो सकता है? गांधी और गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे लोगों ने समझाया कि सभी मनुष्य एक हैं। गांधी जी ने सचेत करते हुए कहा था कि आज हमारा देश अधार्मिक हो रहा है। लोकार्पित पुस्तक के बारे में डॉ. मिश्र ने कहा कि यह पुस्तक नई पीढ़ी के लिए प्रेरक और हमारी पीढ़ी के लिए गौरव की बात है। समारोह में पंडित जसराज की उपस्थिति ने समारोह में प्राण प्रतिष्ठा कर दी है। प्रमोद शाह ने पुस्तक को संपादित करने में जो अनुभव और संघर्ष झेला, उसे सुनाया और कहा कि धर्म अलग है। धर्म के नाम पर राजनीति अलग है। धर्म को संस्कृति में रखने पर देश सुधरता है और राजनीति में रखने पर विकृत होता है। धार्मिक मतभेदों को भुला कर हमें देश को खुशहाल करने की कोशिश करनी चाहिए। कार्यक्रम का संचालन नंदलाल शाह व स्वागत भाषण संयोजक महेश चन्द्र शाह और धन्यवाद ज्ञापन डॉ.शशि शेखर शाह ने किया। सोसायटी फाॅर नेशनल अवेयरनेस के अध्यक्ष व प्रकाशक हरि कृष्ण चौधरी ने कहा कि आनेवाली पीढ़ी के लिए यह पुस्तक प्रेरणादायक साबित होगी। कार्यक्रम के शुरुआत में श्रीमती अनुराधा खेतान ने तीनों पुस्तकों का ऑडिओ-वीडियो चित्रण दिया।

February 18, 2009

मायड़ भाषा दिवस उत्साह पूर्वक मनाने का आह्वान


हनुमानगढ़, 19 फरवरी।
अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति ने 21 फरवरी को विश्व मायड़ भाषा दिवस उत्साह पूर्वक मनाने का आह्वान किया है। समिति की विज्ञप्ति के अनुसार 21 फरवरी, 1952 को बांगला भाषा के मान की रक्षार्थ चार नवयुवकों के बलिदान की याद में यूनेस्को ने इस दिन को अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस घोषित किया है।
संघर्ष समिति ने आह्वान किया है कि राजस्थान प्रांत की मातृभाषा राजस्थानी राजनीतिक उपेक्षा की शिकार है तथा प्रत्येक राजस्थानी को उसके मान-सम्मान के लिए संघर्ष करना चाहिए। समिति ने हर गांव-कस्बे और शहर में राजस्थानी सांस्कृतिक समारोह आयोजित कर अमरीका सरकार द्वारा राजस्थानी को मान्यता दिए जाने पर प्रसन्नता व्यक्त करने तथा देश-प्रदेश में मान्यता दिलाने के लिए संघर्ष का संकल्प लेने का आह्वान किया है। समिति की ओर से इस दिन राज्य के प्रत्येक संभाग मुख्यालय पर धरना-प्रदर्शन तथा मुखपत्ती सत्याग्रह आयोजित किए जाएंगे।


प्रेषक-
सत्यनारायण सोनी
प्रदेश मंत्री
अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति,
राजस्थान।
ठिकाणो- परलीका (हनुमानगढ़)

February 17, 2009

सत्यनारायण सोनी राजस्थानी रा समरथ लिखारा। कहाणी लेखन सारू मोकळो मान-सनमान पायो। आजकाल हनुमानगढ़ जिला री राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, परलीका मांय व्याख्याता (हिन्दी) पद माथै कार्यरत।
बांचो आं रो ओ खास लेख-

ओबामा सरकार नै घणा-घणा रंग
मान बध्यो मायड़ रो

-सत्यनारायण सोनी


राजस्थानियां वास्तै आज हरख-उमाव रो दिन है। खुशियां मनावण रो दिन है। नाचण-गावण रो दिन है। मौज मनावण रो दिन है। दुनिया रै सब सूं तागतवर मानीजण वाळै देस अमरीका राजस्थान री भासा नै सरकारी स्तर पर मान्यता देययर राजस्थान अर राजस्थानी रो मान बधायो है। अमरीका सरकार रै राजनीतिक पदां सारू जका आवेदन करीजैला, वां में दुनिया री 101 भासावां में सूं किणी भासा रा जाणकार आवेदन कर सकैला। वां में सूं 20 भासावां भारत री है। जिणां मांय सूं मारवाड़ी, हरियाणवी, छतीसगढ़ी, भोजपुरी, अवधी अर मगधी ऎड़ी भासावां हैं जिकी अजे तांईं भारतीय संविधान री आठवीं अनुसूची में आपरी जिग्यां नीं थरप सकी।
राजस्थान रा जका लोग बारै बसै, वां नै मारवाड़ी अर वां री भासा पण मारवाड़ी नांव सूं जाणीजै। अमरीका में 'राजस्थान एशोसिएशन ऑफ नॉर्थ अमरीकाय (राना) नांव सूं एक जबरो संगठन है। राना रा प्रतिनिधि डॉ. शशि शाह बतावै कै अमरीका में राजस्थानी रै पर्याय रूप में मारवाड़ी सबद घणो चलन में है। मारवाड़ी राजस्थानी रो ई दूजो नांव है।
अमरीका सरकार हरियाणवी नै भी मान्यता दीनी है। हरियाणवी भी राजस्थानी भासा रो एक रूप है। भासा वैग्यानिकां घणकरै हरियाणा प्रांत नै राजस्थानी भासी क्षेत्र रै रूप में गिण्यो है। हरियाणवी अर राजस्थानी संस्कृति एकमेक है, तो भासा री समरूपता रै ई कारण।
अमरीका री शिकागो यूनिवर्सिटी मांय भी राजस्थानी बरसां सूं पढ़ाई जावै। इण यूनिवर्सिटी मांय राजस्थानी रो न्यारो-निरवाळो विभाग भी थरपीज्योड़ो है। अमरीका री एक संस्था 'लायब्रेरी ऑफ कांग्रेसय बरसां पैली विश्व भासा सर्वेक्षण करवायो तो दुनिया री तेरह समृद्धतम भासावां में राजस्थानी आपरी ठावी ठौड़ थरपी।
जिकी भासा रो दुनिया में इत्तो मान-सम्मान। वा आपरै घर राजस्थान में ई दुत्कारीजै तो काळजो घणो ई बळै। आपरी मायड़ रो ओ अपमान सहन नीं हुवै। कित्ती अजोगती बात है कै राजस्थान रो एक विधायक, जको राजस्थान रो जायो-जलम्यो, राजस्थानी माटी में पळ्यो-बध्यो, राजस्थानी भासा रा संस्कार लेययर विधानसभा पूग्यो। राजस्थान री विधानसभा में बो दूजी 22 भासावां में भासण देय सकै, पण आपरी मायड़भासा में शपथ भी नीं लेय सकै! राजस्थान रै स्कूलां में पैली भासा रै रूप मांय हिन्दी पढ़ाई जावै। राजस्थानी लोग उणरो स्वागत करै। पण दूसरी भासा रै रूप में राजस्थानी री मांग करै। पण राजस्थानी तो तीजी भासा रै रूप में भी नीं सिकारीजै। तीजी भासा रै रूप में दूजै प्रांतां री दर्जनभर भासावां पढ़ाई जावै, तो राजस्थान री राजस्थानी क्यूं नीं? सेठियाजी कैयो-


आठ करोड़ मिनखां री मायड़
भासा समरथ लूंठी।
नहीं मानता द्यो तो टांगो
लोकराज नै खूंटी॥


अमरीका में बसण वाळा राजस्थानियां नै घणा-घणा रंग! ओबामा सरकार नै घणा-घणा रंग! वां राजस्थान अर राजस्थानी रो मान बधायो है। 21 फरवरी दुनियाभर में 'विश्व मातृभाषा दिवसय रै रूप में मनाइजै। अखिल भारतीय राजस्थानी भासा मान्यता संघर्ष समिति राजस्थानी नै संवैधानिक मानता री मांग नै लेययर प्रदेश रा सगळा संभाग मुख्यालयां पर धरना-प्रदर्शन अर मुखपत्ती सत्याग्रह करैला। आपां नै भी आपणी भासा रै मान-सनमान वास्तै लारै नीं रैवणो है।

-परलीका (हनुमानगढ़)
Email- aapnibhasha@gmail.com
blog- www.aapnibhasha.blogspot.com

February 15, 2009

हिन्दुस्तानी एकेडेमी का साहित्यकार सम्मान समारोह:

Dr.Kavita Vachaknavee


इलाहाबाद, 6 फ़रवरी 2009 ।
"साहित्य से दिन-ब-दिन लोग विमुख होते जा रहे हैं। अध्यापक व छात्र, दोनों में लेखनी से लगाव कम हो रहा है। नए नए शोधकार्यों के लिए सहित्य जगत् में व्याप्त यह स्थिति अत्यन्त चिन्ताजनक है।" उक्त विचार उत्तर प्रदेश के उच्च शिक्षा मन्त्री डॊ.राकेश धर त्रिपाठी ने हिन्दुस्तानी एकेडेमी द्वारा आयोजित सम्मान व लोकार्पण समारोह के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए। उत्तर प्रदेश भाषा विभाग द्वारा संचालित हिन्दी व उर्दू भाषा के संवर्धन हेतु सन् 1927 में स्थापित हिन्दुस्तानी एकेडेमी की श्रेष्ठ पुस्तकों के प्रकाशन की श्रृंखला में इस अवसर पर अन्य पुस्तकों के साथ एकेडेमी द्वारा प्रकाशित डॊ. कविता वाचक्नवी की शोधकृति "समाज-भाषाविज्ञान : रंग-शब्दावली : निराला-काव्य" को लोकार्पित करते हुए उन्होंने आगे कहा कि यह पुस्तक अत्यन्त चुनौतीपूर्ण विषय पर केन्द्रित तथा शोधकर्ताओं के लिए मार्गदर्शक है। इस अवसर पर एकेडेमी के सचिव डॉ. सुरेन्द्र कुमार पाण्डेय द्वारा सम्पादित 'सूर्य विमर्श' तथा एकेडेमी द्वारा वर्ष १९३३ ई. में प्रकाशित की गयी पुस्तक 'भारतीय चित्रकला' का द्वितीय संस्करण (पुनर्मुद्रण) भी लोकार्पित किया गया। किन्तु जिस पुस्तक ने एकेडेमी के प्रकाशन इतिहास में एक मील का पत्थर बनकर सबको अचम्भित कर दिया है वह है डॉ. कविता वाचक्नवी द्वारा एक शोध-प्रबन्ध के रूप में अत्यन्त परिश्रम से तैयार की गयी कृति "समाज-भाषाविज्ञान : रंग-शब्दावली : निराला-काव्य"। इस सामग्री को पुस्तक का आकार देने के सम्बन्ध में एक माह पूर्व तक किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। स्वयं लेखिका के मन में भी ऐसा विचार नहीं आया था। लेकिन एकेडेमी के सचिव ने संयोगवश इस प्रकार की दुर्लभ और अद्‌भुत सामग्री देखते ही इसके पुस्तक के रूप में प्रकाशन का प्रस्ताव रखा जिसे सकुचाते हुए ही सही इस विदुषी लेखिका द्वारा स्वीकार करना पड़ा। कदाचित्‌ संकोच इसलिए था कि दोनो का एक-दूसरे से परिचय मुश्किल से दस-पन्द्रह मिनट पहले ही हुआ था। यह नितान्त औपचारिक मुलाकात अचानक एक मिशन में बदल गयी और देखते ही देखते मात्र पन्द्रह दिनों के भीतर न सिर्फ़ बेहद आकर्षक रूप-रंग में पुस्तक का मुद्रण करा लिया गया अपितु एक गरिमापूर्ण समारोह में इसका लोकार्पण भी कर दिया गया। रंग शब्दों को लेकर हिन्दी में अपनी तरह का यह पहला शोधकार्य है। इसके साथ ही साथ महाप्राण निराला के कालजयी काव्य का रंगशब्दों के आलोक में किया गया समाज-भाषावैज्ञानिक अध्ययन भावी शोधार्थियों के लिए एक नया क्षितिज खोलता है। निश्चय ही यह पुस्तक हिदी साहित्य के अध्येताओं के लिए नयी विचारभूमि उपलब्ध कराएगी।
Dr.Kavita Vachaknavee's Book
इस समारोह में एकेडेमी की ओर से हिन्दी, संस्कृत एवम उर्दू के दस लब्धप्रतिष्ठ विद्वानों प्रो. चण्डिकाप्रसाद शुक्ल, डॉ. मोहन अवस्थी, प्रो. मृदुला त्रिपाठी, डॉ. विभुराम मिश्र, डॉ. किशोरी लाल, डॉ. कविता वाचक्नवी, डॉ. दूधनाथ सिंह, डॉ. राजलक्ष्मी वर्मा, डॉ. अली अहमद फ़ातमी और श्री एम.ए.कदीर को सम्मानित भी किया गया। यद्यपि इनमें से डॉ. दूधनाथ सिंह, डॉ. राजलक्ष्मी वर्मा, डॉ. अली अहमद फ़ातमी और श्री एम.ए.कदीर अलग-अलग व्यक्तिगत, पारिवारिक या स्वास्थ्य सम्बन्धी कारणों से उपस्थित नहीं हो सके, तथापि सभागार में उपस्थित विशाल विद्वत्‌ समाज के बीच छः विद्वानों को उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए शाल, नारियल, व सरस्वती की अष्टधातु की प्रतिमा भेंट कर सम्मानित किया गया। प्रशस्ति पत्र भी प्रदान किए गए। एकेडेमी द्वारा अन्य अनुपस्थित विद्वानों के निवास स्थान पर जाकर उन्हें सम्मान-भेंट व प्रशस्ति-पत्र प्रदान कर दिया जाएगा।
सम्मान स्वीकार करते हुए अपने आभार प्रदर्शन में डॊ. कविता वाचक्नवी ने कहा कि इस लिप्सापूर्ण समय में कृति की गुणवता के आधार पर प्रकाशन का निर्णय लेना और रचनाकार को सम्मानित करना हिन्दुस्तानी एकेडेमी की समृद्ध परम्परा का प्रमाण है, जिसके लिए संस्था व गुणग्राही पदाधिकारी निश्चय ही साधुवाद के पात्र हैं।
आरम्भ में हिन्दुस्तानी एकेडेमी के सचिव डॊ. एस. के. पाण्डेय ने अतिथियों का स्वागत किया। उल्लेखनीय है कि वे स्वयं संस्कृत के विद्वान हैं , उनके कार्यकाल में एकेडेमी का सारस्वत कायाकल्प हो गया है। इस अवसर पर समारोह के अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रेमशंकर गुप्त ने सरस्वती दीप प्रज्वलित किया और सौदामिनी संस्कृत विद्यालय के छात्रों ने वैदिक मंगलाचरण प्रस्तुत किया। एकेडेमी के ही अधिकारी सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने खचाखच भरे सभागार में उपस्थित गण्यमान्य साहित्यप्रेमियों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया। *

परलीका में रक्तदान शिविर: ५१ यूनिट रक्त संकलित


परलीका, १५/०२/२००९ ; यहां के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में रविवार को मदर टेरेसा पर्यावरण संरक्षण एवं स्वास्थ्य संस्थान तथा राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई के संयुक्त तत्त्वाधान में रक्तदान शिविर का आयोजित हुआ। शिविर में शिवशक्ति ब्लड बैंक, सिरसा की ओर से ५१ यूनिट रक्त संकलित किया गया।
शिविर का उद्घाटन राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, दीपलाना के प्रधानाचार्य तथा शिक्षाविद् भोजराज छिम्पा ने सर्वप्रथम रक्तदान कर किया। इससे पहले आयोजित उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि सरपंच खिराजराम धानिया, विशिष्ट अतिथि माईधन बैनीवाल, कुनणचंद शर्मा, डॉ. महेश शर्मा, बृजलाल कालवा, केशरीचंद सोनी तथा विशिष्ट रक्तदाता अमरसिंह नायक ने रक्तदान को पूजा समान बताया। डॉ. लक्ष्मीनारायण गुप्ता ने रक्तदान संबंधी भ्रांतियों का निवारण किया। शिविर में कई शिक्षक व साहित्यकार दम्पतियों ने सामूहिक रक्तदान किया। राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई के कार्यक्रम अधिकारी पूर्णमल सैनी व संस्थान अध्यक्ष संदीप मईया ने आभार व्यक्त किया। - अजय कुमार सोनी, गांव- परलीका, तह- नोहर, जिला- हनुमानगढ़(राजस्थान) कानाबाती- 94601-02521

February 13, 2009

भारत के भाग्य का फैसला


Shambhu Choudharyभारत के अर्थशास्त्री जब तक वातानुकूलित चेम्बर में बन्द होकर विदेशी ज्ञान के बल पर भारत के भाग्य का फैसला करते रहेंगे तब तलक भारत के किसानों का कभी भला नहीं हो सकता। भारत में जो किसान सोना पैदा कर रहे हैं वे तो भूखों मर रहें हैं और जो लोग इसका व्यापार कर रहें हैं वे देश के सबसे बड़े धनवान होते जा रहें हैं। इसकी मूल समस्या है हमारे अन्दर का ज्ञान जो गलत दिशा से अर्जित की हुई है।
पूरा लेख इस लिंक को चटका कर देंखे।

February 6, 2009

RAIPUR CENTRAL BRANCH


MYM. RAIPUR CENTRAL BRANCH ORGANISE WITH ASSOCIATION OF AKHIL
BHARTIYA VIKLANG CHETNA PARISAD, MYM RAIPUR CAPITAL & KANYAKUBAJ
SHABA , A UNIQUE PROGRAME OF 92 PAIR VIKLANG YOUVAK YOUVTI SAMUHIK
VIVAH SAMAROH AT ASSIRWAD BHAWAN,BARYON BAZAR, RAIPUR ON 1st FEB
2009 IN THE INTEREST OF SOCIAL REHABILATION OF HANDICAPED (VIKLANG)
PEOPLE. THIS PROGRAM IS REGISTERED FOR GUNIESS BOOK OF WOLRD RECORD &
LIMKA BOOKS OF RECORD .

Santosh Bajaj

February 3, 2009

रक्त दान - जीवन को उपहार



मारवाड़ी युवा मंच, हनुमानगढ़ शाखा द्वारा रजत जयंति वर्ष के उपलक्ष्य पर रक्त दान शिविर गत रविवार 1 फरवरी को स्थानिय जिला अस्पताल स्थित, रक्त संग्रह केन्द्र में आयोजित कर 27 युनिट रक्त दान किया गया। इस अवसर पर अति.जिला पुलिस अधिक्षक श्री अनिल कयाल, प्रमुख चिकित्सा अधिकारी श्री जगतार सिंह खोसा ने मंच के जनउपयोगी कार्यक्रमों को भरपूर सहयोग देने का वादा भी किया। हनुमानगढ़ शाखा के सचिव श्री रमन झूनतरा ने बताया कि मंच आगामी 26-29 मार्च को स्थानिय दुर्गा मंदिर में निःशुल्क हाथ,पैर,एवं कैलिपर्स प्रत्यारोपन शिविर का आयोजन करने जा रही है।


Raman Jhunthraa

'MUKTI DHAM'

MYM Ilkal. Karnatak branch has started the work of our dream project 'MUKTI DHAM' with a budget of 15 lakhs. It was possible with the blessings of elders & co operation of complete Rajasthani samaj. Initial pooja was done with our MLA & president of our city muncipal council. We plan to complete within 5 months & cordially invite our new national president on the occasion.


Ashok Kathariya

BLOOD DONATION

BLOOD DONATION <br />& FREE HEALTH <br />CHECK UP CAMP<br />By Noida Branch Noida branch is pleased to organizing a “ BLOOD DONATION & FREE HEALTH CHECK UP CAMP “ at Salora Vihar ,Sector 62, Noida on 8th February 2009 .


Manoj Agarwal
President, Noida Branch

February 1, 2009

लघुकथा: थाने की डायरी - शम्भु चौधरी


सुबह से ही थाने में सफाई का अभियान चल रहा था। थानेदार सा'ब कल ही इस थाने में नये-नये आये थे।
- नहीं ! नहीं ! " क्रिमनल चार्ट उस तरफ लगाओ।
" हाँ ! ......... अरे मूरख ! गाँधी जी को मेरे चेयर के पीछे लगाओ..."
"बड़ा बाबू जी, जरा देख कर बतायें,...... लॉकउप में पानी की सुराही रखी है की नहीं....?"
"जी सर...."
सा'ब के चेम्बर से निकलते ही बड़ा बाबू मन ही मन नये थानेदार को कोसते हुए.... धीरे-धीरे बड़बड़ाते हुए.... नया-नया है ना....
चेम्बर से बाहर आते ही रोब में दूसरे हवलदारों के ऊपर रोब छाड़ते हुए.... देखतें क्या हैं? ... जाइये अपना काम किजीये। और खुद लॉकउप को देखने चल देते हैं। बड़ा बाबू मन ही मन में बड़बड़ाते हुए....धीरे से एक फीता कस दिया ... हूँ..! ..." जैसे कोई सरकारी थाना नही हजूर के बाप का घर हो" पता नहीं सरकार भी कहाँ-कहाँ से नये-नये छोकड़ों को ऑफिसर बना कर थाने में भेज देती है।
जैसे ही बड़ा बाबू लॉकउप की तरफ बढ़तें हैं एक अप्रत्याशित आवाज ने एकाएक बड़ा बाबू को डरा ही दिया हो।
"बड़ा बाबू ! जरा इधर आइयेगा।"
बड़ा बाबू लॉकउप का रास्ता बीच में ही छोड़ उलटे पांव पुनः सा'ब के चेम्बर की तरफ लौट पड़े। मन में एक अजीब सा डर पहले की अपेक्षा बढ़ चुका था, अचानक से क्या हो गया अभी तो सब ठीक-ठाक ही था, यह तेज आवाज किसलिए कहीं मेरी बात सुन तो नहीं ली सा'ब ने... नहीं... नही... मैं तो मन ही मन में बड़बड़ा रहा था, किसी से कहा भी तो नहीं, फिर.... इस तरह क्यों बुला रहे हैं... यह सब प्रश्न एक साथ मन के कमजोर हिस्से को कंप-कंपा दिया था। दिन में ही तारे नजर आने लगे थे। अभी लड़की को गवना देना भी बाकी है। गांव में बात चली गई की मेरा ट्रान्सफर हो गया तो बस आफ़त का पहाड़ टूट पड़ेगा। नहीं....नहीं.... मुझे काफी सावधानी से काम लेना होगा। .. दौड़ते हुए सा'ब के चेम्बर में जाकर खड़ा होते ही एक लम्बी छलांग के साथ पाँच फीट की सलामी देते हुए.. जी.. सर...हाजीर! .....और सावधान की मुद्रा में खड़ा हो गये थे बड़ा बाबू।
यह सब देखकर सा'ब भी सकपका गये .. अरे ये क्या वही बड़ा बाबू है जो अभी तक मेरे को तीरछी नज़र से देख रहा था।
सा'ब की तरफ पुनः एक अवाज लगाई.... सर.. हाजीर हूँ।
- "बड़ा बाबू !... ये थाने में रोजना की डायरी कौन लिखता है?"
- "सर ! " आपसे पहले वाले सा'ब तो, डायरी लिखने को मना करते थे। कहते थे, डायरी उनसे पूछकर ही लिखा करूँ।" सो डायरी ... थोड़ी चुप्पी...के बाद हकलाते हुए सर... कभी मैं तो कभी सा'ब खुद ही लिखा करते थे। फिर एकदम से नये सा'ब की तरफ भक्ति दर्शाते हुए अब सा'ब आप आ गएं हैं जैसा आपका आदेश होगा।
"नये सा'ब ने बड़ा बाबू के हृदय परिवर्तन पर प्रहार करते हुए .. ये दिवालघड़ी खराब हो गई है या बंद पड़ी है?...."
"- नहीं , सर.... वो बैटरी खराब हो गई है।" एक ही सांस में ..." मेमो बनाकर दिया था सा'ब ...को पर?"
" - पर..... क्या? थानेदार ने बड़ा बाबू की बात को दोहराते हुए पुछा"
सन्नाटा....
" बार-बार बैटरी खराब हो जाती है... बन्द रहने दो... " सर सा'ब ने कहा था तब से यह घड़ी बन्द पड़ी है।"
"कितने दिनों से बन्द है?....."
"यही सर..... चार..पाँच माह हो गये होंगे... बड़ा बाबू ने जबाब दिया"
"ठीक ह...ठीक ह... अब नये थानेदार ने बात को संभालते हुए कहा - आप सभी जरूरी समानों की लिस्ट बना दें"
"पुनः एक ही सांस में - और हाँ ! वह 'डायरी' लेकर कल हम बैठेंगे - सभी हवलदारों को बता दें।"
बड़ा बाबू एकदम से सर की चम्मचागीरी करते हुए - हजूर ! वो थाने के सामनेवाली रामनाथ की दुकान से सब समान मंगा लेते हैं पैसा भी नहीं देना पड़ता .... हल्की मुस्कान को चेहरे के ऊपर बिखेरते हुए...सर वेचारा तब से डरने लगा जब से पिछले थानेदार सा'ब ने उसे एक घंटा थाने के लॉकउप में ही बन्द कर दिया था।"
"क्या अपराध था उसका?"
"कुछ नहीं सर !... बस यूँ ही.. ""उसने सिपाही को कहा था कि पहले का बकाया पैसा दे जाओ तब नया उधार मिलेगा।"" बस क्या था सा'ब ! साहेब ने उसे पैसा देने बुला भेजा और थाने में बन्द कर दिया। बोले.... "पैसा चुक जाये तो बोल देना छौड़ दूँगा" बस क्या था पूरे घर वाले जूट गये थाने का नाम सुनते ही फिर कुछ ले-देकर मामला सलटा।" तब से थाने के नाम से कोई चीज भी मंगाते हैं पूर्जा नहीं काटता.. कहता है भाई चुकता ही समझो।
जैसे ही बड़ा बाबू ने अपनी बात पूरी की " अपने चेहरे के भाव को और सख़्त करते हुए - अब आप जाकर लिस्ट बानाई..."
मानो बड़ा बाबू के सारे मनसुबे पर ही पानी फिर गया हो...पुनः उसी सावधान की मुद्रा में सा'ब को सलामी ठोकते हुए चेम्बर से बाहर निकल गये।
साहेब के चेम्बर से निकलते ही एक बूढ़े किसान को देखकर बड़ा बाबू के भीतर का सारा गुस्सा बरस पड़ा- "रौब से उस किसान की तरफ देखते हुए ..क्या हो गया तेरे को....यहाँ पर किस लिये आया है? .... जाओ उस तरफ बैंची पड़ी है उस पर बैठ... थोड़ी नजर थाने के चारों तरफ घुमाकर देखते हुए कि कहीं कोई चीज इधर-उधर तो नहीं पड़ी है... कहा ने जाकर उधर ब..बैठ..
"जी सरकार! बूढ़ा किसान दुबकता सा जाकर बैंच पर बैठ गया।"
थोड़ी देर चेयर पर जाकर सुस्ताते हुए, पास पड़ी एक बोतल से थोड़े पानी से गले को तरी किया और उस बूढ़े की तरफ नजर उठाकर देखा ही था कि ... बूढ़ा फिर बोल पड़ा.. हजूर.. मेरी.. लड़की....
"हाँ.... हाँ.. क्या हुआ इधर आकर बता... बस जैसे कोई नई कहानी सुनने की दिलचस्पी ने अचानक से बूढ़े की बात की तरफ सबका ध्यान खिंच गया।
अब बूढ़ को भी थोड़ी हिम्मत हो गई " हजूर ! मेरी लड़की को कल कुछ बदमाशों ने ...... हाँ.....बोलो...बोलो क्या किया.....बूढ़ा तबतलक रोने सा लगा...बड़ा बाबू के चेहरे पर एक अजीब सी मधुर मुस्कान को भांपते हुए पास खड़े एक सिपाही ने बूढ़े किसान को अपनी अनुभवी हिम्मत बंधाई... बोल न "क्या हुआ तेरी लड़की के साथ..... "। मन में एक अजीब सी सनसनाहट ने उसके मन में भी कौतूहल पैदा कर दिया।
"सा'ब वे लोग बहुत निर्दयी हैं - हमें मार देगें....."
तो थाने काहे को आये हो.. अपने घर जाओ... बोल.. क्या हुआ तेरी लड़की के साथ... अब सिपाही एक कदम आगे बढ़कर उस बूढ़े से कहानी सुनने के बैताब हो रहा था.. बड़ा बाबू भी चुपचाप मन ही मन किसी स्वप्न सुन्दरी की कल्पना में खो चुके थे। बूढे़ किसान ने अपनी बात की एक परत और उतारी..
"हजूर.. कल शाम को जब मेरी लड़की अपनी माँ के साथ घर लौट रही थी...बस सब अनर्थ हो गया हजूऱ......."
तब तलक पास खड़े सिपाही ने तो अपना आपा ही को दिया था....एक ड़ंडा जोर से बूढ़े की टांग पर जड़ते हुए ..अबे बताता है कि भीतर बंद कर दूँ?
बड़ा बाबू को तो लगा कि किसी बात को सबके सामने बताने में संकोच कर रहा होगा, मन में एक काल्पनिक सुख की कल्पना करते हुए उसे पुचकारते हुए.. सिपाही जी जाईये दो कप चाय लेकर आईये.. बेचारा डर रहा है.... क्या नाम है तुम्हारा.. बूढ़े की तरफ मुखातिब होते हुए बड़ा बाबू ने बूढ़े को कहा।
"हजूर.. रामलाल.... चमार...जात का हूँ..."
"क्या....?"
मानो जात से ही थाने में पहचान होती हो----
"चमार.... तो इधर क्या करने आया है? "
"बूढ़े ने फिर अपनी बात दोहराई ... मेरी लड़की को...."
चमार शब्द सुनते ही बड़ा बाबू के बोलने का रूतबा ही बदला-बदला सा लगने लगा।
तो फिर उसकी इज्जत ले ली होगी?"
"नहीं हजूर"
"तो फिर उसके छेड़खानी की होगी?"
"नहीं हजूर"
"हाँ..हाँ ठीक है... तेरी लड़की को गुण्डे उठाकर ले गये होंगे?"
"नहीं... हजूर..."
अब तलक बड़ा बाबू आग बबूला हो गये, बरसते हुए बोले तो बताता क्यों नहीं.. क्या किया तेरी लड़की को?
"उसके गले की चेन लूट ले गये। पत्नी ने बताया की वो जमींदार का लड़का भी साथ में था। बूढ़े किसान ने धीरे से कहा-"
अब तो मानो बड़ा बाबू के अन्दर का सोया हुआ शैतान ही जग गया।
बरस पड़ै...हरामजादे.. यही बताने के लिये मेरा इतना कीमती वक्त खराब किया।
अब तलक सिपाही भी चाय ले कर आ चुका था, बड़ा बाबू चाय की चुस्की लेकर मन के अन्दर जागे हुए शैतान को समझाने का प्रायास कर रहे थे दूसरी तरफ टेबूल पर दूसरी कप चाय पड़ी-पड़ी ठण्डी हो गई।
एक तरफ किसान की जात तो दुसरी तरफ कहानी के नये मोड़ ने सबके सपने को चकनाचूर कर दिया था।
तभी अचानक से नये थानेदार के डर ने थाने के सन्नाटे को तौड़ दिया।
सिपाही जी ..इनकी डायरी दर्ज करा लिजीये।
बड़ा बाबू ने यह बात ऐसे कही जैसे इस थाने में कोई नई घटना घट रही हो।

[ script code: "Thane Ki Dairy" written by Shambhu Choudhary]
पता: एफ.डी.-453 , साल्टलेक सिटी, कोलकाता - 700106
टिप्पणियाँ

जहां डाल-डाल पर सोने की.. पर झूमे दर्शकगण



पटना सिटी, प्रतिनिधि : अखिल भारतीय मारवाड़ी युवा मंच के 25वें वर्षगांठ पर पटना सिटी शाखा द्वारा रविवार को सनातन धर्म सभा भवन प्रांगण में अंतर विद्यालय देशभक्ति नृत्य प्रतियोगिता में स्कूली छात्र-छात्राओं ने अनोखी छटा बिखेरी। कार्यक्रम का उद्घाटन स्वास्थ्य मंत्री नंदकिशोर यादव ने किया। कार्यक्रम में मंच के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री गोविन्द मेवाड़, उप महापौर संतोष मेहता, संदीप जालान, पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री महेश जालान, प्रान्तिय महामंत्री श्री अनिल वर्मा, प्रदीप बागला, ओमप्रकाश साह, देवकिशन राठी, गोविन्द भरतिया आदि ने मंच के क्रियाकलाप की सराहना की। कार्यक्रम की अध्यक्षता संजीव वर्मा तथा संचालन अनिल वर्मा ने किया। प्रतियोगिता की शुरूआत गणेश वंदना से हुयी। कार्यक्रम में समाज सेवा क्षेत्र के लिये महावीर कमलिया, शिव प्रसाद मोदी, विजय कुमार सिंह, संजय राय, रमण केडिया, स्वर्ण पदक विजेता तीन वर्षीय बच्ची आयुषी (बाल रत्न) समेत 55 लोगों को सम्मानित किया गया। सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरूआत आशीष जानी के जहां डाल-डाल पर सोने की.. गीत पर नृत्य से हुयी। विभिन्न विद्यालय के छोटे-छोटे बच्चों ने देशभक्ति गीत पर कार्यक्रम प्रस्तुत कर जमकर तालियां बटोरी। प्रतियोगिता में चयनित प्रतिभागियों जागृति तिवारी, नेहाश्री, सेंटऐंस स्कूल तथा इन्फैंट जीजस हाईस्कूल को शाम को आयोजित कार्यक्रम में एसडीओ डा. राजीव कुमार एवं आनंद मोहन झा द्वारा पुरस्कृत किया गया।
साभार जागरण समाचार, पटना संस्करण

January 30, 2009

अपना बेवसाइट लाँच किया दिल्ली शाखा ने


mymdelhi.com
20 जनवरी को मंच स्थापना दिवस के उपलक्ष्य पर मंच के राष्ट्रीय कार्यालय में दिल्ली शाखा द्वारा आयोजित एक विशेष कार्यक्रम के अवसर पर दिल्ली शाखा की बेवसाइट www.mymdelhi.com का लोकार्पण दिल्ली शाखा के सक्रिय एवं कर्मठ कार्यकर्ता श्री रमेशजी सोमानी के कर-कमलों से हुआ। इस अवसर पर शाखाध्यक्ष श्री केदार अग्रवाल ने मंच स्थापना से लेकर अब तक की शाखा की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला तथा शाखा द्वारा भारत सरकार के समाज कल्याण विभाग की पहल पर दिल्ली शाखा के सौजन्य में आयोजित किये जा रहे कृत्रिम अंग प्रत्यारोपण कार्यक्रम की जानकारी भी दी। इस अवसर पर दिल्ली शाखा द्वारा रजत जयंती वर्ष के उपलक्ष्य में ‘‘25वर्ष’’ के लोगो[logo] का लोकार्पण राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष श्री अशोक बुच्चा एवं प्रान्तीय अध्यक्ष श्री शिव महिपालजी द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। इस दौरान निवर्तमान राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री रवि अग्रवाल ने दिल्ली शाखा की राष्ट्रीय स्तर के कार्यो में विशिष्ट भूमिका एवं मंच के राष्ट्रीय स्वरूप के पीछे मंच के समर्पित कार्यकर्ताओं के योगदान एवं मंच के प्रति उनके आदर्शरूपी जुनून को मंच के विकास के लिए एक शक्ति के रूप में अपनाने का आग्रह किया। प्रान्तीय अध्यक्ष श्री शिव महिपाल ने दिल्ली प्रान्त की शाखाओं के जनोपयोगी कार्यो में महत्वपूर्ण भूमिका, विशेषकर दिल्ली शाखा के योगदान के बारे में उपस्थित जनों को जानकारी दी गई। -मंच समाचार

January 29, 2009

मारवाड़ी युवा मंच की प्रगतिशील दिल्ली शाखा ने गणतंत्र दिवस

मारवाड़ी युवा मंच की प्रगतिशील दिल्ली शाखा के सदस्यगण गणतंत्र दिवस के अवसर पर झंडोत्तोलन करते हुए।
MYM Pragatisheel Branch Members


26 जनवरी: मारवाड़ी युवा मंच की प्रगतिशील दिल्ली शाखा ने गणतंत्र दिवस के अवसर पर MCD Primery School, Gautam Nagar के 400 छात्र-छात्राओं के साथ मनाया। इस अवसर पर प्रगतिशील शाखाध्यक्ष सुनिता बंसल ने बताया कि इस अवसर पर छात्रों के बीच खेल-कुद प्रतियोगिता भी आयोजित की गई एवं बच्चों के बीच मिठाईयाँ भी बांटी गई।

Pragatisheel Delhi Branch
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January 28, 2009

हवड़ा शाखा: कृत्रिम पैर-कैलिपर प्रत्यारोपण शिविर

मारवाड़ी युवा मंच, हवड़ा शाखा द्वारा दिनांक 25 जनवरी 2009 को शाम चार बजे स्थानीय "गोपाल भवन " में निःशुल्क कृत्रिम पैर एवं कैलिपर प्रत्यारोपण शिविर वितरण समारोह किया गया इस अवसर पर श्रीमती ममता जायसवाल, मेयर-एच.एम.सी., मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जितेन्द्र गुप्ता प्रान्तीय अध्यक्ष श्री संजय शर्मा समारोह में उपस्थित थे। - प्रदीप केड़िया-शाखा अध्यक्ष, मनोज गोयल -शाखा सचिव और विष्णु पोद्दार संयोजक

समाज गौरव सम्मान श्री नन्दकिशोर जालान जी को दिया गया



अखिल भारतीय मारवाड़ी युवा मंच के नवम राष्ट्रीय अधिवेशन के दूसरे दिन समाज गौरव सम्मान का राष्ट्रीय अलंकरण व सम्मान अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन के पूर्व अध्यक्ष एवं युवा मंच के मार्गदर्शक नन्दकिशोर जालान को दिया गया । अधिवेशन में श्री जालान जी ने अपनी अस्वस्थ्यता के चलते जाने में असमर्थता व्यक्त की थी, इसलिये गत 22 जनवरी शाम 5.30 बजे अखिल भारतीय मारवाड़ी युवा मंच के निवर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अनिल के.जाजोदिया, अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री नन्दलाल रूँगटा व निवर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री सीताराम शर्मा, सम्मेलन के राष्ट्रीय महामंत्री श्री रामावतर पोद्दार, समाज विकास के सहयोगी संपादक श्री शम्भु चौधरी, श्री कैलाशपति तोदी, श्री दीलीप गोयनका, श्री मुकेश खेतान, व श्रीमती अनुराधा खेतान ने कोलकाता स्थित उनके निवास पर जाकर उक्त सम्मान उन्हें भैंट की। इस अवसर श्री जालान जी के दीर्घायु होने की कामना की गई।

हनुमानगढ़ शाखा सम्मानित

Republic Day<br />Marwari Yuva Munch<br />Hanumangarh_Branch


26 जनवरी-हनुमानगढ़: मारवाड़ी युवा मंच, हनुमानगढ़ शाखा (राजस्थान) को गणतंत्र दिवस के अवसर पर जिला प्रशासन द्वारा सामाजिक सेवा हेतु सम्मानित किया गया। शाखा सचिव श्री रमन अग्रवाल ने लिखा कि यह सम्मान मंच दर्शन की भावना को और सार्थक करता है। इन्होंने आगे लिखा कि हनुमानगढ़ शाखा यह सम्मान " अखिल भारतीय मारवाड़ी युवा मंच" की समस्त शाखाओं को अनुकरण हेतु समर्पित करती है। (देखें ऊपर चित्र में जिलाधिकरी से पुरस्कार ग्रहण करते हुए शाखाध्यक्ष व शाखा मंत्री) - श्री रमन अग्रवाल, सचिव-हनुमानगढ़ शाखा।

साहित्य शिल्पी ने अंतरजाल पर अपनी सशक्त दस्तक दी


Rajiv Ranjan Prasadसाहित्य शिल्पी ने अंतरजाल पर अपनी सशक्त दस्तक दी है। यह भी सत्य है कि कंप्यूटर के की-बोर्ड की पहुँच भले ही विश्वव्यापी हो, या कि देश के पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण में हो गयी हो किंतु बहुत से अनदेखे कोने हैं, जहाँ इस माध्यम का आलोक नहीं पहुँचता। यह आवश्यकता महसूस की गयी कि साहित्य शिल्पी को सभागारों, सडकों और गलियों तक भी पहुचना होगा। प्रेरणा उत्सव इस दिशा में पहला किंतु सशक्त कदम था।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिवस पर उन्हें स्मरण करने लिये साहित्य शिल्पी ने 25/01/2009 को गाजियाबाद स्थित भारती विद्या सदन स्कूल में लोक शक्ति अभियान के साथ मिल कर प्रेरणा दिवस मनाया। सुभाष चंद्र बोस एसे व्यक्तित्व थे जिनका नाम ही प्रेरणा से भर देता है। साहित्य शिल्पी के लिये भी हिन्दी और साहित्य के लिये जारी अपने आन्दोलन को एसी ही प्रेरणा की आवश्यकता है। कार्यक्रम का शुभारंभ अपने नियत समय पर, प्रात: लगभग साढ़े दस बजे प्रसिद्ध विचारक तथा साहित्यकार बी.एल.गौड के आगमन के साथ ही हुआ। मंच पर प्रसिद्ध शायर मासूम गाजियाबादी तथा सुभाष के चिंतन पर कार्य करने वाले सत्यप्रकाश आर्य भी उपस्थित थे। मंच पर साहित्य शिल्पी का प्रतिनिधित्व चंडीगढ से आये शिल्पी श्रीकांत मिश्र ‘कांत’ ने किया।
नेताजी सुभाष की तस्वीर पर पुष्पांजलि के साथ कार्यक्रम का आरंभ किया गया। तत्पश्चात लोक शक्ति अभियान के मुकेश शर्मा ने आमंत्रित अतिथियों का अभिवादन किया एवं लोक शक्ति अभियान से आमंत्रितों को परिचित कराया। नेताजी सुभाष के व्यक्तित्व पर बोलते हुए तथा विचारगोष्ठी का संचालन करते हुए योगेश समदर्शी ने युवा शक्ति का आह्वान किया कि वे अपनी दिशा सकारात्मक रख देश को नयी सुबह दे सकते हैं। काव्य गोष्ठी का संचालन श्री राजीव रंजन प्रसाद ने किया।


Masum Gajiyavadi
गाजियाबाद के शायर मासूम गाजियाबादी ने अपनी ओजस्वी गज़ल से काव्य गोष्ठी का आगाज़ किया। अमर शहीदों को याद करते हुए उन्होंने कहा :-
भारत की नारी तेरे सत को प्रणाम करूँ
दुखों की नदी में भी तू नाव-खेवा हो गई
माँग का सिंदूर जब सीमा पे शहीद हुआ
तब जा के कहा लो मैं आज बेवा हो गई


पाकिस्तान और सीमापार आतंकवाद पर निशाना साधते हुए मासूम गाजियाबादी आगे कहते हैं:
मियाँ इतनी भी लम्बी दुश्मनी अच्छी नहीं होती
कि कुछ दिन बाद काँटा भी करकना छोड़ देता है
Subhash Niraw
सुभाष नीरव ने अपनी कविता सुना कर श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया। उन्होने कहा -
राहो ने कब कहा हमें मत रोंदों
उन्होंने तो चूमे हमारे कदम और खुसामदीद कहा
ये हमीं थे ना शुकरे कि पैरों तले रोंदते रहे
और पहुंच कर अपनी मंजिल तक
उन्हें भूलते भी रहे....


मास फॉर अवेयरनेस मूवमेंट चलाने वाले नीरज गुप्ता ने सुभाष के व्यक्तित्व पर बोलते हुए राष्ट्रीय चेतना के लिये छोटे छोटे प्रयासों की वकालत की। उन्होने अपने कार्टूनो को उस देश भक्ति का हिस्सा बताया जो लोकतंत्र को बचाने व उसे दिशा देने में आवश्यक है।
उनके वक्तव्य के बाद कार्यक्रम को कुछ देर का विराम दिया गया और उपस्थित अतिथि कार्टून प्रदर्शिनी के अवलोकन में लग गये। कार्यक्रम का पुन: आरंभ किया गया और श्रीकांत मिश्र कांत सुभाष की आज आवश्यकता पर अपना वक्तव्य दिया।
Yogesh Samdarshiयोगेश समदर्शी ने इसके पश्चात बहुत तरन्नुम में अपनी दो कवियायें सुनायीं। एक ओजस्वी कविता में वे सवाल करते हैं:-
तूफानों से जिस किश्ती को लाकर सौंपा हाथ तुम्हारे
आदर्शों की, बलिदानों की बड़ी बेल थी साथ तुम्हारे
नया नया संसार बसा था, नई-नई सब अभिलाषाएं थीं
मातृभूमि और देश-प्रेम की सब के मुख पर भाषाएं थीं
फिर ये विघटन की क्रियाएं मेरे देश में क्यों घुस आईं
आपके रहते कहो महोदय, ये विकृतियाँ कहाँ से आईं


Avinash Vachspatiअविनाश वाचस्पति ने कार्यक्रम में विविधता लाते हुए व्यंग्य पाठ किया। उन्होंने व्यवस्था पर कटाक्ष करते हुए कहा कि “फुटपाथों पर पैदल चलने वालों की जगह विक्रेता कब्जार जमाए बैठे हैं और पैदलों को ही अपना सामान बेच रहे हैं। तो इतनी बेहतरीन मनोरम झांकियों के बीच जरूरत भी नहीं है कि परेड में 18 झांकियां भी निकाली जातीं, इन्हेंज बंद करना ही बेहतर है। राजधानी में झांकियों की कमी नहीं है। सूचना के अधिकार के तहत मात्र दस रुपये खर्च करके आप लिखित में संपूर्ण देश में झांकने की सुविधा का भरपूर लुत्फं उठा तो रहे हैं। देश को आमदनी भी हो रही है, जनता झांक भी रही है। सब कुछ आंक भी रही है। देश में झांकने के लिए छेद मौजूद हैं इसलिए झांकियों की जरूरत नहीं है।
कार्यक्रम में स्थानीय प्रतिभागिता भी रही। गाजियाबाद से उपस्थित कवयित्री सरोज त्यागी ने वर्तमान राजनीति पर कटाक्ष करते हुए कहा :-
बहन मिली, भैया मिले, मिला सकल परिवार
लाया मौसम वोट का, रिश्तों की बौछार
चुन-चुन संसद में गये, हम पर करने राज
सत्तर प्रतिशत माफ़िया, तीस कबूतरबाज
अल्लाह के संग कौन है, कौन राम के साथ
बहती गंगा में धुले, इनके उनके हाथ


काव्यपाठ में सुनीता चोटिया ‘शानू’, शोभा महेन्द्रू, राजीव तनेजा,अजय यादव, राजीव रंजन प्रसाद, मोहिन्दर कुमार, पवन कुमार ‘चंदन’ एवं बागी चाचा ने भी अपनी कवितायें सुनायी।
Sunita Chotiaसुनीता शानू ने अपनी कविता में कहा:-
मक्की के आटे में गूंथा विश्वास
वासंती रंगत से दमक उठे रग
धरती के बेटों के आन बान भूप सी
धरती बना आई है नवरंगी रूप सी


Pawan Kumar Chandanपवन चंदन ने शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए प्रस्तुत किया-
चाहता हूं तुझको तेरे नाम से पुकार लूं
जी करता है कि तेरी आरती उतार लूं


Shobha Mahendroशोभा महेंद्रू ने नेताजी सुभाष पर लिखी पंक्तियाँ प्रस्तुत कीं:-
२३ जनवरी का दिन एक अविष्मर्णीय दिन बन जाता है
और एक गौरवशाली व्यक्तित्त्व को हम लोगों के सामने ले आता है
एक मरण मांगता युवा आकाश से झाकता है
और पश्चिम की धुन पर नाचते युवको को राह दिखाता है


Rajiv Tanejaराजीव तनेजा ने कहा -
क्या लिखूं कैसे लिखूं लिखना मुझे आता नहीं ...
टीवी की झ्क झक मोबाईल की एसएमएस मुझे भाता नही ....


Bagi Chachaबागी चाचा ने सुनाया -
आज भी जनता शहीद हो रही है और वह डाक्टर के हाथो से शहीद हो रही थी
दीनू की किस्मत फूटनी थी सो फूट गई..


कार्यक्रम के मध्य में मोहिन्दर कुमार ने अपनी चर्चित कविता "गगन चूमने की मंशा में..." सुनायी साथ ही, साहित्य शिल्पी और उसकी गतिविधियों तथा उपलब्धियों से उपस्थित जनमानस का परिचय करवाया।
विचार गोष्ठी में सत्यप्रकाश आर्य ने सुभाष चंद्र बोस और उनके व्यक्तित्व पर बहुत विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने सुभाष के जीवित होने जैसी भ्रांतियों पर भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम में स्थानीय विधायक सुनील शर्मा की भी उपस्थिति थी। सुनील जी ने समाज के अलग अलग वर्ग को भी देश सेवा के लिये आगे आने की अपील की। कार्यक्रम के अंत में अध्यक्ष बी.एल. गौड ने अपने विचार प्रस्तुत लिये। उन्होंने कार्य करने की महत्ता पर बल दिया और विरोधाभासों से बचने की सलाह दी।
उन्होने बदलते हुए समाज में सकारात्मक बदलावों की वकालत करते हुए रूढीवादिता को गलत बताया। अपने वक्तव्य के अंत में उन्होंने अपनी कविता की कुछ पंक्तियाँ भी प्रस्तुत की:


ऐ पावन मातृभूमि मेरी
मैं ज़िंदा माटी में तेरी
मैं जन्म-जन्म का विद्रोही
बागी, विप्लवी सुभाष बोस
अतिवादी सपनों में भटका
आज़ाद हिंद का विजय-घोष
मैं काल-निशाओं में भटका
भटका आँधी-तूफानों में
सागर-तल सभी छान डाले
भटका घाटी मैदानों में
मेरी आज़ाद हिंद सेना
भारत तेरी गौरव-गाथा
इसकी बलिदान-कथाओं से
भारत तेरा ऊँचा माथा


कार्यक्रम में साहित्यकारों विद्वानों और स्थानीय जन की बडी उपस्थ्ति थी।
साहित्य शिल्पी ने कार्यक्रम के अंत में यह संकल्प दोहराया कि साहित्य तथा हिन्दी को अभियान की तरह प्रसारित करने के लिये इस प्रकार के आयोजन जीयमित होते रहेंगे।
कार्यक्रम का समापन "जय हिन्द" के जयघोष के साथ हुआ।